(1865-1941 ई.)
'हरिऔध का जन्म आजमगढ जिले के निजामाबाद कस्बे में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के पश्चात इन्होंने स्वाध्याय द्वारा हिंदी, संस्कृत, बंगला, पंजाबी तथा फारसी का ज्ञान अर्जित किया। ये खडी बोली के प्रथम महाकाव्यकार हैं। कविता के साथ ही इन्होंने नाटक, उपन्यास तथा लेख भी लिखे। 'प्रिय-प्रवास इनका बहुचर्चित महाकाव्य है, जिसमें सशक्त भाषा, कोमल-कांत-पदावली, संस्कृत छंदों की विविधता तथा भाव की प्रखरता है। यह अतुकांत छंद में लिखी हुई है। इनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं- 'चोखे चौपदे, 'वैदेही-वनवास, 'प्रेमाम्बु-प्रवाह और ब्रजभाषा में लिखा 'रस कलश।
फूल और काँटा
हैं जनम लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता।
रात में उन पर चमकता चाँद भी,
एक ही सी चाँदनी है डालता॥
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक-सी उन पर हवाएँ हैं बहीं।
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक-से होते नहीं॥
छेद कर काँटा किसी की उँगलियाँ,
फाड देता है किसी का वर वसन।
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भौंर का है बेध देता श्याम तन॥
फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भौंर को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधों औ निराले रंग से,
है सदा देता कली जी की खिला॥
है खटकता एक सबकी ऑंख में,
दूसरा है सोहता सुर-सीस पर।
किस तरह कुल की बडाई काम दे,
जो किसी में हो बडप्पन की कसर॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217