(जन्म 1949 ई.)
बुध्दिनाथ मिश्र का जन्म दरभंगा जिले के देवधा ग्राम में हुआ। हिन्दी व अंग्रेजी में एम.ए. तथा 'यथार्थवाद और हिन्दी नवगीत पर पीएच.डी. की उपाधि पाई। वाराणसी में दैनिक 'आज के सम्पादन के पश्चात सम्प्रति हिन्दुस्तान कॉपर लि., कलकत्ता में राजभाषा प्रंबधक रहे। संप्रति वे ओएनजीसी देहरादून में राजभाषा प्रबंधक हैं।नवगीत विधा के चर्चित कवि बुध्दिनाथ मिश्र का एक गीत-संग्रह : 'जाल फेंक रे मछेरे प्रकाशित है। ये बहुभाषाविद है और हिन्दी तथा मैथिली में समान रूप से रचनाशील है। आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं कवि सम्मेलनों के मंच पर ये काफी लोकप्रिय हैं। इन्होंने निबंध, कहानी, रूपक, रिपोतार्ज आदि विधाओं को भी समृध्द किया है।
एक किरन भोर की
एक किरन भोर की
उतराई आंगने
रखना इसको संभाल कर,
लाया हूँ मांग इसे
सूरज के गांव से
अंधियारे का ख्याल कर।
अंगीठी ताप-ताप
रात की मनौती की,
दिन पूजे धूप सेंक-सेंक
लिपटा कर बचपन को
खांसते बुढापे में,
रख ली है पुरखों की टेक
जलपाखी आस का
बहुराया ताल में
खुश है लहरें उछालकर।
सोना बरसेगा
जब धूप बन खिलेगा मन,
गेंदे की हरी डाल पर।
सरसों के खेतों में
तितलियां उडाते-से
डहडहे पहर चले गए।
दुख है बस इतना
हर मौसम के हाथों
हम बार-बार क्यों छले गए ?
गुनगुनी उसांस को
देहरी से बांधू या
बांट दूं इसे निकालकर!
भला नहीं लगता
यह सर्द-सर्द संबोधन
सेज की नई पुआल पर।
***
गांधारी जिंदगी
बीत गई बातों में रात वह खयालों की
हाथ लगी निंदियारी जिंदगी।
आंसू था सिर्फ एक बूंद, मगर जाने क्यों
भींग गई है सारी जिंदगी।
वे भी क्या दिन थे, जब सागर की लहरों ने
घाट-बंधी नावों की पीठ थपथपाई थी-
जाने क्या जादू था मेरे मनुहारों में,
चांदनी लजाकर इन बांहों तक आई थी
अब तो गुलदस्ते में बासी कुछ फूल बचे।
और बची रतनारी जिंदगी।
मन के आईने में उगते जो चेहरे हैं,
हर चेहरे में उदास हिरनी की आंखें हैं
आंगन से सरहद को जाती पगडंडी की
दूबों पर बिखरी कुछ बगुले की पांखें हैं
अब तो हर रोज हादसे गुमसुम सुनती है
अपनी यह गांधारी जिंदगी।
जाने क्या हुआ, नदी पर कोहरे मंडराए
मूक हुई सांकल, दीवार हुई बहरी है
बौरों पर पहरा है मौसमी हवाओं का
फागुन है नाम, मगर जेठ की दुपहरी है
अब तो इस बियावान में पडाव ढूंढ रही
मृगतृष्णा की मारी जिंदगी।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217