(1919-1947 ई.)
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का जन्म चमोली, गढवाल के मालकोटी ग्राम में हुआ। बचपन प्रकति की रम्य गोद में व्यतीत हुआ। उच्च शिक्षा देहरादून तथा प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई, किंतु स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण गांव लौट गए। वहीं अल्पायु में इनका स्वर्गवास हो गया। बर्त्वाल की कविताओं की प्रमुख विशेषता प्रकृति के साथ तादात्म्य, गहन सौंदर्य-बोध तथा कोमलता है। 1981 में इनकी रचना 'बर्त्वाल की कविताएं (तीन खण्डों में) प्रकाशित हुई।
मेघ कृपा
जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे।
पतझड का सुन कर करुण रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियां निकलीं, निकला यौवन।
जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गई कली।
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई मधुर मही
लख उसे भरे नभ के लोचन।
लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे।
स्वर्ग सरि
स्वर्ग सरि मंदाकिनी, है स्वर्ग सरि मंदाकिनी
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।
गौरी-पिता-पद नि:सृते, हे प्रेम-वारि-तरंगिते
हे गीत-मुखरे, शुचि स्मिते, कल्याणि भीम मनोहरे।
हे गुहा-वासिनि योगिनी, हे कलुष-तट-तरु नाशिनी
मुजको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।
मैं बैठ कर नवनीत कोमल फेन पर शशि बिम्ब-सा
अंकित करूंगा जननि तेरे अंक पर सुर-धनु सदा।
लहरें जहां ले जाएंगी, मैं जाउंगा जल बिंदु-सा
पीछे न देखूंगा कभी, आगे बढूंगा मैं सदा।
हे तट-मृदंगोत्ताल ध्वनिते, लहर-वीणा-वादिनी
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।
प्रकाश हास
किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया
तरुण तपस्वी तुमने किसका दर्शन पाया?
सुख-दुख में हंसना ही किसने तुम्हे सिखाया
किसने छूकर तुम्हें स्वच्छ निष्पाप बनाया?
फैला चारों ओर तुम्हारे घन सूनापन
सूने पर्वत चारों ओर खडे, सूने घन।
विचर रहे सूने नभ में, पर तुम हंस-हंस कर
जाने किससे सदा बोलते अपने भीतर?
उमड रहा गिरि-गिरि से प्रबल वेग से झर-झर
वह आनंद तुम्हारा करता शब्द मनोहर।
करता ध्वनित घाटियों को, धरती को उर्वर
करता स्वर्ग धरा को निज चरणों से छूकर।
तुमने कहां हृदय-हृदय में सुधा स्रोत वह पाया
किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया?
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217