(1433-1543 ई. अनुमानित)
कबीरदास के बाद धरमदास कबीर-पंथ के सबसे बडे उन्नायक थे। इनका जन्म बघेलखंड के बाँधोगढ स्थान में एक वैश्य कुल में हुआ था। प्रारंभ से ही इनमें भजन, पूजन, तीर्थाटन और दान-पुण्य की प्रवृत्ति थी। कबीर का शिष्य होने के पश्चात् इन्होंने निर्गुण ब्रह्म का चिंतन आरंभ किया। समस्त संपत्ति दीन-दुखियों को लुटा दी तथा सत्तनाम के बैपारी हो गए। इनकी स्फुट रचनाएँ ही मिलती हैं। 'सुख निधान इनका प्रधान काव्य है। इनकी बानी में प्रेम, आर्तभाव तथा दास्य-भक्ति की प्रधानता है।
इनकी भाषा पर पूर्वी का प्रभाव है।
पद
हम सत्त नाम के बैपारी।
कोइ-कोइ लादै काँसा पीतल, कोइ-कोइ लौंग सुपारी॥
हम तो लाद्यो नाम धनी को, पूरन खेप हमारी॥
पूँजी न टूटै नफा चौगुना, बनिज किया हम भारी॥
हाट जगाती रोक न सकिहै, निर्भय गैल हमारी॥
मोती बूँद घटहिं में उपजै, सुकिरत भरत कोठारी॥
नाम पदारथ लाद चला है, 'धरमदास बैपारी॥
झरिलागै महलिया, गगन घहराय।
खन गरजै, खन बिजरी चमकै, लहर उठै सोभा बरनि न जाय॥
सुन्न महल से अमरित बरसै, प्रेम अनंद होइ साध नहाय॥
खुली किवरिया मिटी अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाय॥
'धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन मैं रहत समाय॥
नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई।
लचपच रहो समाय, सार तामैं अधिकाई।
केती बार धुलाइये, दे दे करडा धोय।
ज्यों-ज्यों भट्ठी पर दिए, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय॥
साहब तेरी देखौं सेजरिया हो॥
लाल महल कै लाल कंगूरा, लालिनि लाग किवरिया हो।
लाल पलँग कै लाल बिछौना, लालिनि लागि झलरिया हो॥
लाल साहेब की ललिनि मूरत, लालि लालि अनुहरिया हो।
'धरमदास बिनवै कर जोरी, गुरु के चरन बलहरिया हो॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217