(जन्म 1947 ई.)
दिनेश सिंह का जन्म 14 सितम्बर 1947 को रायबरेली जिले के गौरारुपई नामक ग्राम में हुआ। सम्प्रति ये उत्तरप्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग में सेवारत हैं। ये नवगीत विधा के विशिष्ट कवि हैं। इनके गीतों में संवेदना तथा अंतरंगता है। 'पूर्वाभास इनका काव्य संग्रह है। इसके अलावा अनेक कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। श्री दिनेश सिंह का नाम हिंदी साहित्य जगत में बड़े अदब से लिया जाता है। सही मायने में कविता का जीवन जीने वाला यह गीत कवि अपनी निजी जिन्दगी में मिलनसार एवं सादगी पसंद रहा है । गीत-नवगीत साहित्य में इनके योगदान को एतिहासिक माना जाता है । दिनेश जी ने न केवल तत्कालीन गाँव-समाज को देखा-समझा है और जाना-पहचाना है उसमें हो रहे आमूल-चूल परिवर्तनों को, बल्कि इन्होने अपनी संस्कृति में रचे-बसे भारतीय समाज के लोगों की भिन्न-भिन्न मनःस्थिति को भी बखूबी परखा है , जिसकी झलक इनके गीतों में पूरी लयात्मकता के साथ दिखाई पड़ती है। इनके प्रेम गीत प्रेम और प्रकृति को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करते हैं । अज्ञेय द्वारा संपादित 'नया प्रतीक' में आपकी पहली कविता प्रकाशित हुई थी। 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' तथा देश की लगभग सभी बड़ी-छोटी पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीत, नवगीत तथा छन्दमुक्त कविताएं, रिपोर्ताज, ललित निबंध तथा समीक्षाएं निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। 'नवगीत दशक' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' के नवगीतकार तथा अनेक चर्चित व प्रतिष्ठित समवेत कविता संकलनों में गीत तथा कविताएं प्रकाशित। 'पूर्वाभास', 'समर करते हुए', 'टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर', 'मैं फिर से गाऊँगा' आदि आपके नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । आपके द्वारा रचित 'गोपी शतक', 'नेत्र शतक' (सवैया छंद), 'परित्यक्ता' (शकुन्तला-दुष्यंत की पौराणिक कथा को आधुनिक संदर्भ देकर मुक्तछंद की महान काव्य रचना) चार नवगीत-संग्रह तथा छंदमुक्त कविताओं के संग्रह तथा एक गीत और कविता से संदर्भित समीक्षकीय आलेखों का संग्रह आदि प्रकाशन के इंतज़ार में हैं। चर्चित व स्थापित कविता पत्रिका 'नये-पुराने' (अनियतकालीन) के आप संपादक हैं । उक्त पत्रिका के माध्यम से गीत पर किये गये इनके कार्य को अकादमिक स्तर पर स्वीकार किया गया है । आपके साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में आपको राजीव गांधी स्मृति सम्मान, अवधी अकेडमी सम्मान, पंडित गंगासागर शुक्ल सम्मान, बलवीर सिंह 'रंग' पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है।
चलो देखें
चलो देखें,
खिडकियों से
झांकती है धूप
उठ जाएं।
सुबह की ताजी हवा में
हम नदी के साथ
थोडा घूम-फिर आएं!
चलो, देखें,
रात-भर में ओस ने
किस तरह से
आत्म मोती-सा रचा होगा!
फिर जरा-सी आहटों में
बिखर जाने पर,
दूब की उन फुनगियों पर
क्या बचा होगा?
चलो
चलकर रास्ते में पडे
अंधे कूप में पत्थर गिराएं,
रोशनी न सही, तो आवाज ही पैदा करें,
कुछ तो जगाएं!
एक जंगल
अंधरे का-रोशनी का
हर सुबह के वास्ते जंगल।
कल जहां पर जल भरा था
अंधेरों में
धूप आने पर वहीं दलदल!
चलो,
जंगल में कि दलदल में,
भटकती चीख को टेरें, बुलाएं,
पांव के नीचे,
खिसकती रेत को छेडें,
वहीं पगचिह्न अपने छोड आएं।
फिर कदम्ब फूले !
फिर कदम्ब फूले
गुच्छे-गुच्छे मन में झूले
पिया कहाँ?
हिया कहाँ?
पूछे तुलसी चौरा,
बाती बिन दिया कहाँ?
हम सब कुछ भूले
फिर कदम्ब फूले
एक राग,
एक आग
सुलगाई है भीतर,
रातों भर जाग-जाग
हम लंगड़े-लूले
फिर कदम्ब फूले
वत्सल-सी,
थिरजल-सी
एक सुधि बिछी भीतर,
हरी दूब मखमल-सी
कोई तो छूले
फिर कदम्ब फूले ।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217