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हिन्दी के कवि

गंगा प्रसाद विमल

(जन्म 1939 ई.)

गंगा प्रसाद विमल का जन्म उत्तरकाशी, उत्तरप्रदेश में हुआ। पंजाब विश्वविद्यालय से एम.ए., तथा पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पश्चात् दिल्ली के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। सम्प्रति ये केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के निदेशक हैं। विमल ने हिन्दी साहित्य की बहु आयामी सेवा की है। इनकी रचनाएं अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली, जापानी आदि में अनूदित हुई। कविता-संग्रह हैं : 'विजप, 'बोधि-वृक्ष और 'इतना कुछ। ये रायल एशियाटिक सोसायटी के फेलो तथा 'ऑथर्स गिल्ड के उपाध्यक्ष रहे। इनका उपन्यास 'मृगांतक अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इन्हें बिहार एवं उत्तरप्रदेश सरकार के विशेष पुरस्कार प्राप्त हुए।

शेष
कई बार लगता है
मैं ही रह गया हूँ अबीता पृष्ठ
बाकी पृष्ठों पर
जम गई है धूल।

धूल के बिखरे कणों में
रह गए हैं नाम
कई बार लगता है
एक मैं ही रह गया हूँ
अपरिचित नाम।

इतने परिचय हैं
और इतने सम्बंध
इतनी आंखें हैं
और इतना फैलाव
पर बार-बार लगता है
मैं ही रह गया हुं
सिकुडा हुआ दिन।

बेहिसाब चेहरे हैं
बेहिसाब धंधे
और उतने ही देखने वाले दृष्टि के अंधे
जिन्होंने नहीं देखा है
देखते हुए
उस शेष को
उस एकांत शेष को
जो मुझे पहचानता है
पहचानते हुए छोड देता है
समय के अंतरालों में...
***
कौन कहां रहता है
घर मुझमें रहता है या मैं
घर में
कौन कहां रहता है
घर में घुसता हूँ तो
सिकुड जाता है घर
एक कुर्सी
या पलंग के एक कोने में
घर मेरी दृष्टि में
स्मृति में तब कहीं नहीं रहता
वह रहता है मुझमें
मेरे अहंकार में
फूलता जाता है घर
जब मैं रहता हूँ बाहर
वह मेरी कल्पना से निकल
खुले में खडा हो जाता है
विराट-सा
फूलों के उपवन-सा उदार
मेरे मोह को
संवेदन में बदलता
और संवदेन को त्रास में
घर मुझमें रहता है अक्सर
मैं भी रहता हूँ उसमें
वह बांधे रहता है मुझे
अपने पाश में...!
***
रूपांतर
इतिहास
गाथाएं
झूठ हैं सब
सच है एक पेड
जब तक वह फल देता है तब तक
सच है
जब यह दे नहीं सकता
न पत्ते
न छाया
तब खाल सिकुडने लगती है उसकी
और फिर एक दिन खत्म हो जाता है वह
इतिहास बन जाता है
और गाथा

और सच से झूठ में
बदल जाता है
चुपचाप।

 

 

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217