(1883-1972 ई.)
इनका जन्म उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के हडहा ग्राम में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पाठशाला में हुई। स्वाध्याय द्वारा हिंदी, उर्दू तथा फारसी का ज्ञान प्राप्त किया। प्रेम और शृंगार की कविताओं में इनका उपनाम 'सनेही और पौराणिक तथा सामाजिक विषयों वाली कविताओं में 'त्रिशूल है। इनके समय में कविता का एक 'सनेही स्कूल ही प्रचलित हो गया था। इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं- 'प्रेम-पचीसी, 'त्रिशूल तरंग तथा 'कृषक-क्रंदन। इन्हें हिंदी काव्य सम्मेलनों का प्रतिष्ठापक कहा जा सकता है।
कोयल
काली कुरूप कोयल क्या राग गा रही है,
पंचम के स्वर सुहावन सबको सुना रही है।
इसकी रसीली वाणी किसको नहीं सुहाती?
कैसे मधुर स्वरों से तन-मन लुभा रही है।
इस डाल पर कभी है, उस डाल पर कभी है,
फिर कर रसाल-वन में मौजें उडा रही है।
सब इसकी चाह करते, सब इसको प्यार करते,
मीठे वचन से सबको अपना बना रही है।
है काक भी तो काला, कोयल से जो बडा है,
पर कांव-कांव इसकी, दिल को दु:खा रही है।
गुण पूजनीय जग में, होता है बस, 'सनेही,
कोयल यही सुशिक्षा, सबको सिखा रही है।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217