(11वीं शताब्दी अनुमानित)
मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य तथा हठयोग के आचार्य गोरखनाथ मध्ययुग के एक विशिष्ट महापुरुष थे। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की 40 छोटी-मोटी रचनाओं का परिचय प्राप्त है। इनमें सबदी, पद, प्राण, संकली, नरवैबोध आदि 13 ग्रंथों का एकत्र प्रकाशन डॉ. पीताम्बरदत्त बडथ्वाल ने 'गोरख बानी नाम से किया है। इनकी हठयोग साधना ईश्वरवाद को लेकर चली थी, अत: सूफियों की भाँति इनकी ओर मुसलमान भी आकर्षित हुए।
पद
ऊँ सबदहि ताला सबदहि कूची सबदहि सबद भया उजियाला।
काँटा सेती काँटा षूटै कूँची सेती ताला।
सिध मिलै तो साधिक निपजै, जब घटि होय उजाला॥
अलष पुरुष मेरी दिष्टि समाना, सोसा गया अपूठा।
जबलग पुरुषा तन मन नहीं निपजै, कथै बदै सब झूठा॥
सहज सुभाव मेरी तृष्ना फीटी, सींगी नाद संगि मेला।
यंम्रत पिया विषै रस टारया गुर गारडौं अकेला॥
सरप मरै बाँबी उठि नाचै, कर बिनु डैरूँ बाजै।
कहै 'नाथ जौ यहि बिधि जीतै, पिंड पडै तो सतगुर लाजै॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217