(1563-1606ई.)
गुरु रामदास के पुत्र अर्जुन देव का जन्म गोइंदवाल में हुआ। ये सिक्खों के पाँचवें गुरु हैं। इन्होंने कई महान कार्य किए, अमृतसर तथा तरनतारन के मंदिर बनवाए, गुरुओं की बानी को गुरुमुखी में लिखवाया तथा 'ग्रंथ साहब के रूप में मंदिर में उसकी स्थापना करके ग्रंथ साहब की पूजा की परंपरा स्थापित की। जहाँगीर ने इन्हें बडी यातनाएँ दीं।
इन्हें जलते कडाहे में बैठाया गया और कारागार में डाल दिया। पाँच दिन तक अर्जुन देव जले शरीर को लिए पडे रहे, किन्तु शांति भंग नहीं हुई। छठे दिन 'जपुजी का जाप करते-करते शरीर छोड दिया। इस समय इनकी आयु मात्र 43 वर्ष की थी। इन्होंने 6000 से अधिक पद रचे हैं, जिनमें 'सुखमनी सबसे सरस है। इनकी रचना में गुरु-भक्ति और ईश्वर-भक्ति का उपदेश है। भाषा हिंदी अधिक और पंजाबी कम है। इन्होंने कई प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है।
पद
तू मेरा सखा तू ही मेरा मीतु, तू मेरा प्रीतम तुम सँगि हीतु॥
तू मेरा पति तू है मेरा गहणा, तुझ बिनु निमखु न जाइ रहणा॥
तू मेरे लालन, तू मेरे प्रान, तू मेरे साहिब, तू मेरे खान॥
जिउ तुम राखहु तिउ ही रहना, जो तुम कहहु सोइ मोहि करना॥
जहँ पेखऊँ तहाँ तुम बसना, निरभय नाम जपउ तेरा रसना॥
तू मेरी नवनिधि, तू भंडारू, रंग रसा तू मनहिं अधारू॥
तू मेरी सोभा, तू संग रचिआ, तू मेरी ओट, तू मेरातकिया॥
मन तन अंतर तूही धिआइया, मरम तुमारा गुरु तें पाइया॥
सतगुरु ते दृढिया इकु एकै, 'नानक दास हरि हरि हरि टेरै॥
गिआन-अंजनु गुर दिआ, अगिआन-ऍंधेर बिनासु।
हरि-किरपा ते संत भेटिआ, नानक मनि परगासु॥
पहिला मरण कबूलि करि, जीवन की छडि आस।
होहु सभना की रेणुका, तउ आउ हमारे पास॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217