(जन्म 1939 ई.)
किशन सरोज का जन्म बरेली के बलियाग्राम में हुआ था। बालपन में ही इन्होंने पिता को खो दिया। इनका बचपन गांव में ही बीता। किशन सरोज गीत विधा के रागात्मक भाव के कवि हैं। इन्होंने अब तक लगभग 400 गीत लिखे हैं। इनके कविता संग्रह का नाम है : 'नंदन वन डूब गया। इनके प्रेमपरक गीत सहज अभिव्यंजना एवं नवीन उत्प्रेक्षाओं के कारण मर्मस्पर्शी हैं।
ताल-सा हिलता रहा मन
धर गए मेहंदी रचे-
दो हाथ जल में दीप,
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन।
बांचते हम रह गए-
अन्तर्कथा
स्वर्णकेशा-
गीत-वधुओं की व्यथा
ले गया चुनकर कमल-
कोई हठी युवराज,
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन।
जंगलों का दुख-
तटों की त्रासदी
भूल, सुख से सो गई-
कोई नदी
थक गई लडती हवाओं से-
अभागी नाव,
और झीने पाल-सा हिलता रहा मन।
तुम गए क्या-
जग हुआ अंधा कुआं
रेल छूटी, रह गया-
केवल धुआं
गुनगुनाते हम भरी आंखों-
फिरे सब रात,
हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन।
***
नींद सुख की
नींद सुख की फिर हमें सोने न देगा
यह तुम्हारे नैन में तिरता हुआ जल
छू लिए भीगे कमल-
भीगी ॠचाएं
मन हुए गीले-
बहीं गीली हवाएं
बहुत सम्भव है डुबो दे सृष्टि सारी
दृष्टि के आकाश में घिरता हुआ जल।
हिमशिखर, सागर, नदी-
झीलें, सरोवर
ओस, आंसू, मेघ, मधु-
श्रम-बिंदु, निर्झर
रूप धर अनगिन कथा कहता दुखों की
जोगियों-सा घूमता-फिरता हुआ जल।
लाख बांहों में कसें
अब ये शिलाएं
लाख आमंत्रित करें
गिरि-कंदराएं
अब समंदर तक पहुंचकर ही रुकेगा
पर्वतों से टूटकर गिरता हुआ जल।
***
अनसुने अध्यक्ष हम
बांह फैलाए खडे, निरुपाय, तट के वृक्ष हम
ओ नदी! दो चार पल, ठहरो हमारे पास भी
चांद को छाती लगा
फिर सो गया नीलाभ जल
जागता मन के अंधेरों में
घिरा निर्जन महल
और इस निर्जन महल के एक सूने कक्ष हम
ओ भटकते जुगनुओं! उतरो हमारे पास भी।
मोह में आकाश के
हम जुड न पाए नीड से
ले न पाए हम प्रशंसा-पत्र
कोई भीड से
अश्रु की उजली सभा के, अनसुने अध्यक्ष हम
ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी
लेखनी को हम बनाएं
गीतवंती बांसुरी
फढूंढते परमाणुओं की
धुंध में अलकापुरी
अग्नि-घाटी में भटकते, एक शापित यक्ष हम
ओ जलदकेशी प्रिये! संवरो हमारे पास भी
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217