हिन्दी के कवि
किशोर
(18वीं शताब्दी)
किशोर का पूरा नाम जुगलकिशोर बताया जाता है। ये जाति के पंजाबी राव (ब्रह्म भट्ट) थे। इनके पिता का नाम बालकृष्ण था। किशोर मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के आश्रित कवि थे। इनके ग्रंथ हैं- 'अलंकार-निधि, 'कवित्त-संग्रह तथा 'फुटकर कवित्त। किशोर की कविता लालित्यपूर्ण है, शब्द-चयन अनूठा है।
पद
फूलन दै अबै टेसू कदम्बन, अम्बन बौरन छावन दै री।
री मधुमत्त मधूकन पुंजन, कुंजन सोर मचावत दै री॥
क्यों सहिहै सुकुमारि 'किसोर अरी कल कोकिल गावन दै री।
आवत ही बनिहै घर कंतहि, बीर बसंतहि आवन दै री॥
चहुं ओरन ज्योति जगावै, 'किसोर, जगी प्रभा जीवन-जूटी परै।
तेहिं तें झरि मानों अंगार अनी, अपनी घनी इंदुट-बधूटी परै॥
चहुं नाचै नटी सी, जराव जटी सी, प्रभा सों पटी सी, न खूटी परै।
अरी एरी हटापटी बिज्जु छटा, छटी छूटी घटान तें टूटी परै॥
यह सौति सवादिन जा दिन तें, मुख सों मुख लायो हियो रसुरी।
निस द्यौस रहै न धरी सुघरी, सुनि कानन कान्हर की जसुरी॥
यक आपस बेधस बेध करै, असुरी दृग आनि ढरै अंसुरी।
अब तो न 'किसोर कछू बसुरी, बंसुरी ब्रज बैरिनि तूं बसुरी॥
अम्बिन तैं अम्बर तैं, द्रुमनि दिगम्बर तैं
अपर अडंबर तैं, सखि सरसो परै।
कोकिल की कूकन तैं, हियन की कन तैं,
अतन भभूकन तैं, तन परसो परै॥
कहत 'किसोर, कंज पुंजन तैं, कुंजन तैं,
मंजु अलि गुंजन तैं, देखु दरसो परै।
बसन तैं, बासन तैं, सुमन सुबासन तैं,
बैहर तैं, बन तैं, बसंत बरसो परै॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217