(1495-1581 ई. अनुमानित)
अष्टछाप के कवियों में सूरदास एवं नंददास के पश्चात् कृष्णदास की रचना उत्तम मानी जाती है। इनका जन्म गुजरात में राजनगर (अहमदाबाद) के तिलोतरा गाँव में एक कुणबी (पटेल) परिवार में हुआ।
इनकी बुध्दिमत्ता एवं कार्यकुशलता से प्रभावित होकर वल्लभाचार्य ने इन्हें दीक्षा दी तथा मंदिर का अधिकारी बनाया। राग कल्पद्रुम तथा राग रत्नाकर में इनकी रचनाएँ संग्रहित हैं। इनके लगभग 250 पद प्राप्त हैं। अनकी कविता अत्यंत सरस और भावभीनी है।
पद
मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।
ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गडि ठठक्यो॥
सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै, फिर चित अनत न भटक्यो।
'कृष्णदास किए प्रान निछावर, यह तन जग सिर पटक्यो॥
देख जिऊँ माई नयन रँगीलो।
लै चल सखी री तेरे पायन लागौं, गोबर्धन धर छैल छबीलो॥
नव रंग नवल, नवल गुण नागर, नवल रूप नव भाँत नवीलो।
रस में रसिक रसिकनी भौहँन, रसमय बचन रसाल रसीलो॥
सुंदर सुभग सुभगता सीमा, सुभ सुदेस सौभाग्य सुसीलो।
'कृष्णदास प्रभु रसिक मुकुट मणि, सुभग चरित रिपुदमन हठीलो॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217