(1658-1707 ई.)
लाल तैलंग ब्राह्मण थे जो 'नागनाथ की दसवीं पीढी में पैदा हुए। ये महाराज छत्रसाल के दरबारी कवि थे और उन्हीं के साथ एक युध्द में लडते हुए मारे गए। इनकी तीन रचनाएँ प्राप्त हैं- 'छत्र-प्रकाश, 'विष्णु-विलास तथा 'राज-विनोद। छत्र-प्रकाश में युध्द वर्णन है, विष्णु-विलास में बरवै छंद में लिखे नायिका-भेद हैं तथा राज-विनोद कृष्ण चरित्र पर आधारित है। इनकी भाषा में लालित्य एवं प्रवाह है।
पद
छाये नभमंडल मैं, सलज सघन घन,
कारे पीरे श्वेत रंग, धारतै रहत हैं।
'लाल जू कहत, त्यौंही चहकि चुरैल ऐसी,
चंचला जवाल जाल, जारतै रहत हैं॥
वन प्रभु पुंजन मैं, मालती निकुंजन मैं,
सीतल समीर, अनुसारतै रहत हैं।
कैसे धरै धीर जीव, पीव बिन मेरी बीर,
पीव-पीव पपिहा पुकारतै रहत हैं॥
होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं,
झिल्ली-झनकार, दबि देह दहने लगे।
दौरि-दौरि धुरवा, धुधारे मारे भूधर से,
भूधर भ्रमाय, चित चोय चहने लगे॥
'लाल लखौ पावस प्रताप जगती तल पैं,
शीतल समीर बीर बैरी बहने लगे।
दाबे, दबे, दबकीले, दमक, दिखाए, दीह,
दिशि, देश, बादर, निसासी रहने लगे॥
सिंधु के सपूत, सिंधु तनया के बंधु,
अरे बिरही जरे हैं, रे अमंद तेरे ताप तैं
तू तौ दोषी दोष तैं, कालिमा कलंक भयो,
धारे उर छाप, रिषी गौतम के साप तैं।
'लाल कहै हाल तेरो, जाहिर जहान बीच,
बारुणी को बासी त्रासी राहु के प्रताप तैं।
बाँधो गयो, मथो गयो, पीयो गयो, खारो भयो,
बापुरो समुद्र तो से पूत ही के पास तैं॥
बडभाग सुहाग भरी पिय सों, लहि फागु में रागन गायो करै।
कवि 'लाल गुलाल की धूँधर में, चख चंचल चारु चलायो करै॥
उझकै झिझकै झहराय झुकै, सखि-मंडल को मन भायो करै।
छतियाँ पर रंग परे ते तिया, रति रंग ते रंग सवायो करै॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217