(18वीं शताब्दी)
ललित किशोरी का जन्म का नाम सा कुंदनलाल था। इनके पिता गोविंदलाल लखनऊ के निवासी थे। कुंदनलाल कृष्णभक्त हो गए और लखनऊ छोडकर वृंदावन चले गए। वहाँ इन इन्होंने ललित किशोरी के नाम से भगवत लीला संबंधी सरस पदों की रचना की, जिनकी संख्या लगभग दस हजार बताई जाती है। 1873 में इनका देहावसान हो गया। ललित किशोरी के 'रास-विलास 'अष्टयाम तथा 'समय प्रबंध नामक ग्रंथ उत्तम हैं। भाषा उर्दू, खडी बोली, मारवाडी मिश्रित ब्रज भाषा है।
पद
नैन चकोर, मुखचंद ँकौं वारि डारौं,
वारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोर पै।
प्रानहूँ को वारि डारौं हँसन दसन लाल,
हेरन कुटिलता और लोचन की कोर पैर।
वारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा-स्याम,
महल मिलाप रस रास की झकोर पै।
अतिहिं सुघर बर सोहत त्रिभंगी-लाल,
सरबस वारौं वा ग्रीवा की मरोर पै॥
लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीले से,
कटीले और कुटीले, चटकीले मटकीले हैं।
रूप के लुभीले, कजरीले उनमीले, बर-
छीले, तिरछीले से फँसीले औ गँसीले हैं॥
'ललित किसोरी झमकीले, गरबीले मानौं,
अति ही रसीले, चमकीले औ रँगीले हैं।
छबीले, छकीले, अरु नीले से, नसीले आली,
नैना नंदलाल के नचीले और नुकीले हैं॥
यमुना पुलिन कुंज गह्वर की, कोकिल ह्वै द्रुम कूक मचाऊँ।
पद-पंकज प्रिय लाल मधुप ह्वै, मधुरे-मधुरे गुंज सुनाऊँ॥
कूकुर ह्वै ब्रज बीथिन डोलौं, बचे सीथ रसिकन के पाऊँ।
'ललित किसोरी आस यही मम, ब्रज रज तज छिन अनत न जाऊँ॥
मोहन के अति नैन नुकीले।
निकसे जात पार हियरा, के, निरखत निपट गँसीले॥
ना जानौं बेधन अनियन की, तीन लोक तें न्यारी।
ज्यों ज्यों छिदत मिठास हिये में, सुख लागत सुकुमारी॥
जबसों जमुना कूल बिलोक्यो, सब निसि नींद न आवै।
उठत मरोर बंक चितवनियाँ उर उतपात मचावै॥
'ललित किसोरी आज मिलै, जहवाँ कुलकानि बिचारौं।
आग लगै यह लाज निगोडी, दृग भरि स्याम निहारौं॥
दोहे
सुमन वाटिका-विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल।
कोमल कर दोउ भावते, धरिहैं बीनि दुकूल॥
कब कालीदह कूल की, ह्वैहौ त्रिबिध समीर।
जुगल अंग-ऍंग लागिहौं, उडिहै नूतन चीर॥
कब कालिंदी कूल की, ह्वैहौं तरुवर डारि।
'ललित किसोरी लाडिले, झूलैं झूला डारि॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217