(जन्म 1937 ई.)
ललित शुक्ल साठोत्तरी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म नेवादा ग्राम, प्रतापगढ में हुआ। शिक्षा एम.ए., पी-एच.डी. तथा डी.लिट. तक हुई। सम्प्रति ये दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में प्राध्यापक हैं। हिन्दी की सभी विधाओं में इनकी समान गति है। 'स्वप्ननीड, 'समरजयी, 'अग्निकोण, 'अंतर्गत और 'सहमी हुई शताब्दी इनके काव्य ग्रंथ हैं। इसके अतिरिक्त 'धुंधलका (कहानी संग्रह), 'वाम कविता और 'साठोत्तरी-कविता (संपादित काव्य) 'सियारामशरण गुप्त : सृजन, मूल्यांकन और 'नया काव्य : नए मूल्य (समीक्षा) इनकी चर्चित कृतियां हैं।
इच्छा की भाषा
वह आती है चुपचाप
मटमैली आभा में लिपटी
भय के ताप से डरी-डरी
यहां-वहां ताकती
झांकती छोटी-छोटी आंखों में
पंजों की आहट तक सुनी नहीं जाती
पर वह आती है
मेरे ध्यान तोडती
कभी तो किताबों में
डायरी के पन्नों में खोया-खोया मैं
वहां होता हूँ, केवल मैं
वह सहमी-सी आती
घूरती जाती
मासूमियत बांटती
मैं निर्निमेष उसे ताकता
वह फूर्र से फुदक जाती
अति गति के छोर पर
मेरा मन उखड जाता
बिजली के तारों पर नाचता
माधवी की लतर फलांगता
अपने पास पुन: लौट आता
खोई हुई सी हेरती
उडनछू व्यक्तित्व सहेजती
स्वरहीन वह आ जाती पास, बहुत पास
बिखरे दानों को टूंगती
अनार की फूली टहनियों पर दोलती
हॉलीहॉक का रंग पहचानती
कैक्टस के गमले बचाती
अनफूले कचनार पर बैठ जाती है
गुलाब से संलाप नहीं
पर अनफूले नीबू में गंध तलाशती
मैं भूल जाता हूँ
जनतंत्र, प्रजातंत्र, कविता, कहानी
और खतो-किताबत
दुनिया के धंधे
आना-जाना रातों का, दिन का
चलना थके पैरों का
लस्टम-पस्टम जीना कटी-फटी जिंदगी का
मसोसता है मन
यह रोज क्यों नहीं आती
स्वयं उगे कैक्टसों पर बैठ
यह बुलबुल क्यों नहीं गाती
गाती क्यों नहीं?
***
सन्देहास्पद
राजा!
तुम लाख, दस लाख
करोड, दस करोड को जुबान
दे सकते हो
पर काश
तुम्हारे जुबान होती!
राजमार्ग
तुम्हारी लम्बाई पर
हमें नाज है
अपना सौन्दर्य लिए
बहुत भागते हो
पर कहीं पहुंच भी पाते हो क्या?
सागर!
तुम्हारी सम्पदा की
कोई थाह नहीं मिली
पर काश!
तुम्हारी अमीरी
किसी थके-हारे-प्यासे की प्यास
बुझा पाती!
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217