(जन्म 1922 ई.)
लक्ष्मीकांत वर्मा का जन्म बस्ती (उ.प्र.) में हुआ। शिक्षा उर्दू, फारसी से प्रारंभ हुई तथा लेखन हिन्दी से। पहले राजनीति में सक्रिय रहे, किंतु पिछले 30 वर्षों से स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। इनकी लेखनी गजल, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, कविता, सभी साहित्यिक विधाओं पर चली है। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं : 'नए प्रतिमान, 'आदमी का जहर, 'धुएं की लकीरें, 'सीमांत के बादल तथा 'अतुकांत। ये कविता में मानव के खण्डित व्यक्तित्व को व्यक्त करना चाहते हैं।
एक दर्द और कई सीमाएं
हां
यह मैं हूँ
अकेला राहगीरों से अलग
मगर
मेरे साथ भी एक कारवां है
जिसे तुम कभी नहीं देखोगे
(मैं-
महज राख का गुबार नहीं
राह की गति भी हूँ
जिसे तुम नहीं समझोगे)
वह विराट् स्वप्न जिसके समक्ष सारा ब्राह्मण्ड केवल तीन
कदमों में बंध जाता है
वह अस्तित्व जिसमें केवल अनुभूतियों के क्षण समय के
मापदण्ड होते हैं
सच मानों मैं अकेला हूँ, इतना अकेला जितना प्रत्येक नक्षत्र दूसरे से अपरिचित किंतु अपरिचिति
की किरणों से प्रदीप्त
अकेला किंतु उस सामूहिक चेतना से अभिभूत...
शायद माला के उस मणि-सा जो केवल इसीलिए शोभा पाता है,
क्योंकि वह माला के दानों से सम्बध्द किन्तु पृथक होता है
मेरी सीमाएं- अस्थि-पंजर देह की, पिण्ड की, दृष्टि की, बुध्दि की
लेकिन मैं तुम्हारी उधार ली हुई दृष्टि लेकर क्या करूंगा, क्योंकि वह दृष्टि मेरी नहीं होगी, तुम्हारी
होगी
मेरे अस्तित्व के नाश पर वह बनी होगी।
मेरी सीमाएं हैं- आस्था की, विचारों की, संस्कारों की लेकिन मैं केवल अपनी आस्था लेकर क्या
करूंगा, क्योंकि तुम केवल समूह को पूजते हो
जिसमें सब कुछ है, केवल व्यक्ति नहीं है!
एक गलत अनुभूति के माध्यम से दूसरा सही निष्कर्ष
मैं आज व्यस्त हूँ
क्योंकि पडा-पडा सुन रहा हूँ
पडा-पडा देख रहा हूँ
पडा-पडा चल रहा हूँ
लोग गलत कहते हैं
पडे-पडे आदमी काहिल
हो जाता है।
बाथरूम का शावर खुला है
टैप से बूंद-बूंद पानी टपक रहा है
टेबू बडा शरारती है
मेरे पास से जाने कब उठा
और जाकर बम्बे में टपकने लगा।
मेरे बगैर उठे
दुनिया बदल गई
बच्चे धूप में चले गए
चारपाइयां आंगन में उल्टी खडी हो गई
मैं पडे-पडे देख रहा हूँ
यह बेडरूम
ड्राइंग रूम में बदल गया
सुबह दोपहर हो गई
कैलेण्डर की तारीख बदल गई
मैं पडा-पडा देखता रहा
जल्दी-जल्दी उठा
पत्नी पर बिगडा
आईने में अपनी शक्ल की
हजामत बनाई
बिना नहाए ही कपडे पहनने लगा
धुला कपडा नहीं मिला
गंदा ही पहन लिया
जूते को पहले उलटा पहना
कुछ तकलीफ हुई, लेकिन नही समझा
कोट पर ब्रश नहीं किया
पैण्ट की क्रीज सरगपताली ही रहने दिया।
रात को कोसा
क्यों नींद नहीं आई
आई तो सुबह क्यों चली गई
बस पर बस
आदमी पर आदमी
सडके विधवा-सी नजर आई
मुझे अपनी विधवा भाभी
याद आ गई
उन्होंने कहा था :
उनका लिवर खराब है
घडी की स्ंप्रिग की तरह।
रोड नं. एक
काशीपुरा
बाबू काशीनाथ मर गए
याद आया
इतवार को मरे थे
आज इतवार है।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217