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हिन्दी के कवि

लीलाधर जगूडी

(जन्म 1944 ई.)

लीलाधर जगूडी  का जन्म टेहरी जिले के घंगण ग्राम में हुआ। दस वर्ष की अवस्था में इन्होंने घर त्याग दिया। कुछ वर्ष भटकते रहे, फिर गढवाल रेजीमेंट में सिपाही बन गए। सम्प्रति ये लखनऊ में उ.प्र. शासन में सेवारत हैं। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं : 'नाटक जारी है, 'इस यात्रा में, 'शंखमुखी शिखरों पर, 'रात अभी मौजूद है, 'बची हुई पृथ्वी तथा 'घबराए हुए लोग। इनकी कविता में जीवन का कटु सत्य तथा आक्रोश है।

रात
रात! उछलकर
पेडों पर, रास्तों पर, मकानों पर- हर कहीं पडती है
और मुझमें दुबका हुआ अंधेरा
हर उजाले के लिए सुरक्षित रहता है

अधसोए शहर की! धकधकाती चक्कियां
हवा हांफती है
रात का दिल धडकता है
मेरा एक खूंखार दोस्त
मुझे दस्ताने पहनकर पकडता है
और हम दोनों परिस्थिति के दर्द को
पनामा पिलाते हैं

महसूस करते हैं कि बादल की लपेट
और पहाडों पर टूटती बिजलियां
कि समय से मौसम का
अघोषित युध्द शुरू हो गया
और जिसमें तारीखें बोई थीं
मिट्टी का वह हिस्सा-
हमेशा के लिए बंजर पड गया
जंगलों के कान बहरे हो गए
पेड, झरने की आवाज नहीं सुनते
सागर ने और बादल भेजे हैं
अभी और घिरेंगी और टूटेंगी बिजलियां
सुबह तक।
***
लडाई
दुनिया की सबसे बडी लडाई
आज भी एक बच्चा लडता है
पेट के बल, कोहनियों के बल
और घुटनों के बल
लेकिन जो लोग उस लडाई की मार्फत
बडे हो चुके
मैदान के बीचों बीच
उनसे पूछता हूँ-
कि घरों को भी खंदक में क्यों बदल रहे हो?

जानते हो यह उस बच्चे के
खेल का मैदान है
जो आज भी दुनिया की
सबसे पहली लडाई लडता है

ये सब सोचने की जिन्हें फुर्सत नहीं
उनसे मेरा कहना है
कि जिन्हें मरने की भी फुर्सत नहीं थी
उन्हें भी मैंने मरा हुआ देखा है
पर उस तरह नहीं
जिस तरह कि एक बच्चा मरता है।
जिसकी न कहीं कोई कब्र होती है
न कोई चिता जलती है

बच्चों के लिए गङ्ढे खोदे जाते हैं
ठीक जैसे हम पेड लगाने के लिए
खोदते हैं

उन्हें भी मैं जानता हूँ
जो बूट पहनते हैं
पर एक बार भी मरे हुए जानवरों को
याद नहीं करते

जबकि बंदूक को वे एक बार भी
नहीं भूल पाते

उनमें से
कुछ तो दुनिया के सायरनों के
मालिक हैं
जो तीन-चार शहरों को नहीं
बल्कि पांच-छ: मुल्कों को
हर सालखंदकों में उतार देते हैं

उनका ऐलान है
कि घर एक आदिम खंदक है
और जमीन एक बहुत बडी कब्र का नाम है

इसलिए लोगों!
मेरी कविता हर उस इंसान का बयान है
जो बंदूकों के गोदाम से
अनाज की ख्वाहिश रखता है

मेरी कविता
हर उस आंख की दरख्वास्त है
जिसमें आंसू हैं

ये जो हरी घास के टीले हैं
ये जो दरवाजों से सटे हुए
हवा के झोंके हैं
ये अब थोडे दिनों की दास्तान हैं

यहां कोई बच्चा
चाहे वह पूरा आदमी ही क्यों न बन जाए
अपने पैरों पर
खडा नहीं हो सकेगा
पेट के बल नहीं चल सकेगा
कोहनियों और घुटनों के बल भी नहीं
क्योंकि
पहली लडाई वाले बच्चे
दुनिया की
सबसे आखिरी लडाई लडने वाले हैं।

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217