(जन्म 1923 ई.)
नन्द चतुर्वेदी का जन्म राजस्थान में हुआ। इन्होंने एम.ए. हिन्दी में किया तथा ब्रजभाषा में समस्यापूर्ति से काव्यारम्भ किया। ये 'बिन्दु पत्रिका के सम्पादक रहे। सम्प्रति ये उदयपुर में रहते हैं। 'यह समय मामूली नहीं इनका कविता-संग्रह है। 'शब्द संसार की यायावरी (निबंध-संग्रह) पर इन्हें राजस्थान का सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त हुआ।
गंगास्नान के लिए
गोपीनाथ अपने गांव से गठरी लेकर चला था
अब शहर में सडक पार करना है
रास्ते दिखते हैं कई
कौन-सा रास्ता जाता है
हरिद्वार या गया या प्रयाग
शहर में असमंजस में है गोपीनाथ
सिर पर रखी गठरी तो और भी गजब है
ठिठक कर लोग खडे हैं
गठरी देखने के लिए
विदेशी, गठरी में लगी गांठों पर हतप्रभ हैं
गांठ में गांठ में गांठ
कोई बम तो नहीं है
कहां के हो, कहां जाना है
थाना दूर नहीं है
किस-किस का लालच
किस-किस का भय
बंध गया है गठरी के साथ
कपडे बांध कर लाया था गोपीनाथ
गंगा स्नान के लिए
यह यात्रा निर्मल जल के तलाश में थी
कहां गंगा और कहां यमुना
अभी तो सडक के उस पार जाना है
गोपीनाथ को
गठरी वह अकारण ही ले आया था
संदेह और तमाशा बनने के लिए।
कार्तिक
लौट आई हैं
कार्तिक की दूध नहाई रातें
घर-पिछवाडे
दूध पीकर
दुबके हुए हैं मां के पास मेमने
भय रहित
धीरे से आता है तेंदुआ
चोर की तरह दुबकता हुआ
गद्दीदार पैर रखता
हिंसा की चमचमाती आंखों से
चारों तरफ रखता
दिग्विजयी सुल्तान
रेड अलर्ट, सायरन
कर्फ्यू, धारा एक सौ चवालीस
कुछ भी नहीं पहले या बाद में
भेडों का शोकार्त स्वर
दिगंत तक जाकर लौट आता है
सुबह पूछते हैं लोग
गडरिए से
क्या हुआ था रात को
बहुत बार आवाज दी थी भेडों ने
गडरिए मेमने गिनता है
दो कम
तेंदुए के पंजे अंकित हैं
निर्जीव लेटी मेडें ही
इस शोकांतिका की साक्षी हैं
जो खामोश हैं।
युध्द- एक मन: स्थिति
फिर एक घृणा का अन्धा सर्प
उन्मत्त हो गया है
अब हमें फिर चन्दन की घाटियों में
बारूद बिछानी पड रही है
हम इस सन्ताप को कभी नहीं भूलेंगे
लोगों को आकाश की तरफ
देखने में बहुत दिन लगेंगे
वे बहुत दिन तक न तो पुल बनाएंगे
और न पार करेंगे
खाइयां हो जाएगी
बहुत दिनों बाद लगेगा
कि कोई मौसम बदल गया है
झील फिर से नीली हो गई है
हरसिंगार फिर से झर रहा है
शहर मौसमी उदासी में नहीं
मौत के तहखाने में उतर गए हैं
रेस्तरां में वे धुनें नहीं बजतीं
न वे कहकहे लगते हैं
दिनभर लोग कयास करते हैं
मृत्यु और ध्वंस के आंकडे उन्हें याद हैं
युध्द में कोई नहीं हारता
किन्तु बाद में, बहुत बाद में
आदमी एक केंचुए की तरह लगने लगता है
टूटे हुए पुलों पर शहर
खडे-खडे प्रतीक्षा करते हैं
एक अंधे, आस्थाहीन भविष्य की।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217