रीतिकाल के अन्तर्गत कवि,रीतिकार एवं टीकाकार के रूप में प्रतापसाहि का नाम विशेष रूप से स्मरणीय है। ये बुन्देलखन्ड-निवासी रतनेस बंदीजन के पुत्र थे तथा चरखारी-नरेश महाराज विक्रमसिहं के आश्रय में भी रहते थे। ये पन्ना के महाराज छत्रसाल के आश्रय में भी रहे थे। इनका रचना-काल १८२३ और १८४३ ई. के बीच माना जाता है। इनके द्वारा रचित आठ ग्रन्थ बताये जाते हैं- जयसिंहप्रकाश, श्रृंगारमंजरी, व्यंग्यार्थकौमुदी, श्रृंगारशिरोमणि, अलंकारचिन्तामणि, काव्यविनोद, जुगलनखशिख और रसचन्द्रिका। इनके अतिरिक्त इन्होनें जसवन्तसिहं के ’भाषाभूषण’, मतिराम के ’रसराज’ बलभद्र के ’नखशिख’ और बिहारी की ’सतसई’ की टीकाएं भी लिखीं। टीकाओं से इतर ग्रंथों मेम आज ’काव्य-विलास’ और ’व्यंग्यार्थकौमुदी’ ही उपलब्ध है।
इन्होनें जिस व्यंग्य को काव्य का जीवित कहा है, उसे अत्यंत ईमानदारी के साथ अपनी कविता में निरूपित कर दिखाया है। कहना न होगा कि व्यंग्य और रस परिपाक की दृष्टि से इनका काव्य इतना स्वच्छ है कि इस युग के अनेक रस-ध्वनिवादी कवि भी इनके समकक्ष नहीं पहुंच पाते।
सीख सिखाई न मानति है बरहू बस संग सखीन के आवै।
खेलत खेल नये जल में बिन काम वृथा कत जाम बितावै॥
छोडि. कें साथ सहेलिन को रहिकै कहि कौन सवाद दिखावै।
कौंन परी यह बानि अरी नित नीर भरी गगरी ढरकावै॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217