(1881-1962 ई.)
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म जौनपुर जिले के कोइरीपुर ग्राम में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर में ही हुई। इन्होंने कविता के अलावा उपन्यास, नाटक, आलोचना, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास तथा बालोपयोगी पुस्तकें लिखीं और 'कविता कौमुदी (आठ भाग में), हिंदी, उर्दू, संस्कृत, बंगला की कविताएं तथा 'ग्राम्य गीत (कविता संकलन) संपादित और प्रकाशित किए। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं- 'मिलन, 'पथिक, 'स्वप्न तथा 'मानसी। 'स्वप्न पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। ये प्राक्छायावादी युग के महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने राष्ट्रप्रेम की कविताएं भी लिखीं।
पुष्प विकास
एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें
देख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के।
खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥
वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी,
पाई न, लजा के रही बाहर भवन के।
मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे,
तब से मुंदे न मुख चकित सुमन के॥
अन्वेषण
मैं ढूंढता तुझे था, जब कुंज और वन में।
तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥
तू 'आह बन किसी की, मुझको पुकारता था।
मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥
मेरे लिए खडा था, दुखियों के द्वार पर तू।
मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में॥
बनकर किसी के आंसू, मेरे लिए बहा तू।
आंखें लगी थीं मेरी, तब मान और धन में॥
बाजे बजा-बजाकर, मैं था तुझे रिझाता।
तब तू लगा हुआ था, पतितों के संगठन में॥
मैं था विरक्त तुझसे, जग की अनित्यता पर
उत्थान भर रहा था, तब तू किसी पतन में॥
बेबस गिरे हुओं के, तू बीच में खडा था।
मैं स्वर्ग देखता था, झुकता कहां चरन में॥
तूने दिए अनेकों अवसर न मिल सका मैं।
तू कर्म में मगन था, मैं व्यस्त था कथन में॥
तेरा पता सिकंदर को, मैं समझ रहा था!
पर तू बसा हुआ था, फरहाद कोहकन में॥
क्रीसस की 'हाय में था, करता विनोद तू ही।
तू अंत में हंसा था, महमूद के रुदन में॥
प्रह्लाद जानता था, तेरा सही ठिकाना।
तू ही मचल रहा था, मंसूर की रटन में॥
आखिर चमक पडा तू गांधी की हड्डियों में।
मैं था तुझे समझता, सुहराब पीले तन में॥
कैसे तुझे मिलूंगा, जब भेद इस कदर है।
हैरान होके भगवन्, आया मैं सरन में॥
तू रूप है किरन में, सौंदर्य है सुमन में।
तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में॥
तू ज्ञान हिंदुओं में, ईमान मुस्लिमों में।
तू प्रेम क्रिश्चियन में, तू सत्य है सुजन में॥
हे दीनबंधु ऐसी, प्रतिभा प्रदान कर तू।
देखूं तुझे दृगों में, मन में तथा वचन में॥
कठिनाइयों दु:खों का, इतिहास ही सुयश है।
मुझको समर्थ कर तू, बस कष्ट के सहन में॥
दु:ख में न हार मानूं, सुख में तुझे न भूलूं।
ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217