(1541-1603 ई. अनुमानित)
रसखान दिल्ली के रहने वाले पठान सरदार थे। आरंभ में ये प्रेम में अत्यधिक आसक्त थे, किन्तु बाद में इनका मोह भंग हुआ तथा गोकुल जाकर इन्होंने स्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और श्रीनाथजी के अनन्य भक्त हो गए। 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में इनका भी चरित उपलब्ध है। इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं- 'प्रेम-वाटिका, 'सुजान-रसखान तथा 'दान-लीला। रसखान ने राधा, कृष्ण और गोपियों के प्रेम एवं लीलाओं का अद्भुत वर्णन किया है। इनकी भाषा में अनुप्रास, यमक, श्लेष और रूपक अलंकार विद्यमान हैं और बात कहने के ढंग में निरालापन है। हिन्दी के मुसलमान कृष्ण भक्तों में ये सर्वाधिक लोकप्रिय हुए हैं। ऐसे ही भक्तों को लक्ष्य करके भारतेंदु हरिश्चंद्र के कहा था- 'इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिक हिन्दू वारिए।
सवैया
मानुष हौं तो वही 'रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धरयो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कलिंदी-कूल कदम्ब की डारन॥
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिध्दि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥
'रसखान कबौं अन ऑंखिन सों, ब्रज के बन बाग तडाग निहारौं।
कोटिक कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
धूरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरैं ऍंगना, पैंजनि बाजति, पीरी, कछोटी॥
वा छबि को 'रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी।
काग के भाग कहा कहिए, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥
नैन लख्यो जब कुंजन तैं, बनि कै निकस्यो मटक्यो री।
सोहत कैसे हरा टटकौ, सिर तैसो किरीट लसै लटक्यो री।
को 'रसखान कहै अटक्यो, हटक्यो ब्रजलोग फिरैं भटक्यो री।
रूप अनूपम वा नट को, हियरे अटक्यो, अटक्यो, अटक्यो री॥
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
प्रान वही जु रहैं रिझि वापर, रूप वही जिहिं वाहि रिझायो।
सीस वही जिहिं वे परसे पग, अंग वही जिहीं वा परसायो
दूध वही जु दुहायो वही सों, दही सु सही जु वहीं ढुरकायो।
और कहाँ लौं कहौं 'रसखान री भाव वही जू वही मन भायो॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217