(जन्म 1934 ई.)
रवीन्द्र भ्रमर का जन्म जौनपुर में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए., पी-एच.डी. की। आजकल अलीगढ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हैं। इनके कविता- संग्रह : 'कविता-सविता, 'रवीन्द्र भ्रमर के गीत, 'प्रक्रिया तथा 'सोन मछरी मन बसी हैं। इन्होंने 'अभिजात और 'सहज कविता का सम्पादन किया है तथा अनेक आलोचनात्मक पुस्तकें भी लिखी हैं।
बदलते संदर्भ
सारा संदर्भ
बदल जाता है।
इस कोने के फूलदान को
जरा उस कोने कीजिए,
इस आले के दर्पन को
उस आले,
या इस मेज का रुख
जरा-सा यूं
कि उधरवाली खिडकी का
आकाश दिखाई पडने लगे!
सारा संदर्भ-
बदल जाता है-
प्रत्येक दृश्य
नए-नए अर्थ देने लगता है-
इस-ऐसे अनूठे
सत्य की उपलब्धि
मुझे तब हुई
जब
इधर की दीवार पर लगे
तुम्हारे चित्र को
मैंने उधर की दीवार पर लगा दिया!
***
दे दिया मैंने
आज का यह दिन
तुम्हें दे दिया मैंने।
आज दिनभर तुम्हारे ही खयालों का लगा मेला,
मन किसी मासूम बच्चे-सा फिरा भटका अकेला,
आज भी तुम पर
भरोसा किया मैंने।
आज मेरी पोथियों में शब्द बनकर तुम्हीं दीखे,
चेतना में उग रहे हैं अर्थ कितने मधुर-तीखे,
आज अपनी जिंदगी को
जिया मैंने।
आज सारे दिन बिना मौसम घनी बदली रही है
सहन-आंगन में उमस की, प्यास की, धारा बही है,
सुबह उठ कर नाम जो
ले लिया मैंने।
***
नदी के साथ
चलो नदी के साथ चलें।
नदी वत्सला है, सुजला है,
इसकी धारा में अतीत का दर्प पला है,
वर्तमान से छनकर यह भविष्य-पथ गढती,
इसका हाथ गहें-
युग की जययात्रा पर निकलें।
चलो, नदी के साथ चलें।
सदा सींचती जीवन-तट को,
स्नेह दिया करती आस्था के अक्षय वट को,
घट को अनायास पावन पय से भर देती,
इसकी लहरों में उज्ज्वल कर्मों के-
पुण्य फलें।
चलों, नदी के साथ चलें।
इसके आंचल की छायाएं,
मानस के गायत्री-प्रात, ॠचा-संध्याएं,
लहरों पर इठलातीं दूरागत नौकाएं-
जादू की बांसुरी बजाएं-
जिनमें गान ढलें।
चलो, नदी के साथ चलें।
***
सिंधु-वेला
'सिंधु-वेला।
तप्त रेती पर पडा चुपचाप मोती सोचता है, आह!
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर,
क्या हुआ, किसने उजाडा मुझे
ज्वार आए, गए, जल-तल शांत-निश्चल,
मैं यहां निरुपाय ऐसे ही तपूंगा।
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल।
बहुत संभव, फिर न मुझको मिले
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर।
किंतु, माता-भूमि।
आह! स्वर्गिक भूमि॥
सिंधु, उसकी अनथही गहराइयां
शंख, घोंघे, मछलियां, साथी-संघाती,
आह! माता भूमि!
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल।
तप्त रेती पर पडा चुपचाप मोती सोचता है।
सिंधु-वेला-
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217