(जन्म 1911 ई.)
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म मुजफ्फरनगर के एलम ग्राम में हुआ। शिक्षा देहरादून तथा प्रयाग में हुई। ये हिंदी तथा उर्दू के विद्वान हैं। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्रेजी कवि एजरा पाउण्ड से प्रभावित है। इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं- 'कुछ कविताएँ, 'कुछ और कविताएँ, 'इतने पास अपने, 'चुका भी नहीं हूँ मैं, 'बात बोलेगी, 'उदिता तथा 'काल तुझसे होड है मेरी। ये 'कबीर सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए।
उषा
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे-
भोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पडा है)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर-से,
कि जैसे धुल गई हो,
स्लेट पर या लाल खडिया चाक
मल दी हो किसी ने।
नील जल में या किसी की,
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और
जादू टूटता है, इस उषा का, अब,
सूर्योदय हो रहा है।
लौट आ, ओ धार!
लौट आ, ओ धार!
टूट मत ओ साँझ के पत्थर
हृदय पर।
(मैं समय की एक लंबी आह!
मौन लंबी आह!)
लौट आ, ओ फूल की पंखडी!
फिर
फूल में लग जा।
चूमता है धूल का फूल
कोई, हाय!!
सौंदर्य
एक सोने की घाटी जैसे उड चली
जब तूने अपने हाथ उठाकर
मुझे देखा
एक कमल सहस्रदली होंठों से
दिशाओं को छूने लगा
जब तूने ऑंख भर मुझे देखा।
न जाने किसने मुझे अतुलित
छवि के भयानक अतल से
निकाला-जब तू, बाल लहराए,
मेरे सम्मुख खडी थी : मुझे नहीं ज्ञात।
सच बताना, क्या तू ही तो नहीं थी?
तूने मुझे दूरियों से बढकर
एक अहर्निश गोद बनकर
लपेट लिया है,
इतनी विशाल व्यापक तू होगी,
सच कहता हूँ, मुझे स्वप्न में भी
गुमान न था
हाँ, तेरी हँसी को मैं उषा की भाप से निर्मित
गुलाब की बिखरती पंखुडियाँ ही समझता था :
मगर वह मेरा हृदय भी कभी छील डालेगी,
मुझे मालूम न था।
तेरी निर्दयता हो, शायद दया हो,
दोनों की एक-प्राणता ही शायद
तेरा उजलापन और
तेरा सौंदर्य है।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217