(1931-1986 ई.)
श्रीकांत वर्मा का जन्म बिलासपुर, मध्यप्रदेश में हुआ। ये गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुडे थे तथा लोकसभा के सदस्य रहे। 'भटका मेघ, 'मायादर्पण, 'जलसाघर, 'दिनारंभ, 'गरुड किसने देखा है तथा 'मगध इनकी काव्य-कृतियां हैं। 'झाडियां तथा 'संवाद इनके कहानी-संग्रह है। 'बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में एक आलोचनात्मक ग्रंथ है।
आस्था की प्रतिध्वनियां
जीवन का तीर्थ बनी जीवन की आस्था।
आंसू के कलश लिए
हम तुम तक आती हैं।
हम तेरी पुत्री हैं, तेरी प्रतिध्वनियां हैं।
अपने अनागत को
हम यम के पाशों से वापस ले आने को आतुर हैं।
जीवन का तीर्थ बनी ओ मन की आस्था!
अंधकार में हमने जन्म लिया
और बढी,
रुइयों-सी हम, दैनिक द्वंद्वों में धुनी गईं।
कष्टों में बटी गईं,
सिसकी बन सुनी गईं,
हम सब विद्रोहिणियां कारा में चुनी गईं।
लेकिन कारा हमको
रोक नहीं सकती है,
रोक नहीं सकती है,
रोक नहीं सकती है!
जन-जन का तीर्थ बनी ओ जन की आस्था!
मीरा-सी जहर पिए
हम तुझ तक आती हैं।
हम सब सरिताएं हैं।
समय की धमनियां हैं,
समय की शिराएं हैं।
समय का हृदय हमको चिर-जीवित रखना है।
इसीलिए हम इतनी तेजी से दौड रहीं,
रथ अपने मोड रहीं,
पथ पिछले छोड रहीं,
परम्परा तोड रहीं।
लौ बनकर हम युग के कुहरे को दाग रहीं।
सन्नाटे में ध्वनियां बनकर हम जाग रहीं।
जीवन का तीर्थ बनी, जीवन की आस्था।
टूटी पडी है परम्परा
टूटी पडी है परम्परा
शिव के धनुष-सी रखी रही परम्परा
कितने निपुण आए-गए
धनुर्धारी।
कौन इसे बौहे? और कौन इसे
कानों तक खींचे?
एक प्रश्नचिह्न-सी पडी रही परम्परा।
मैं सबमें छोटा और सबसे अल्पायु-
मैं भविष्यवासी।
मैंने छुआ ही था, जीवित हो उठी।
मैंने जो प्रत्यंचा खींची
तो टूट गई परम्परा।
मुझ पर दायित्व।
कंधों पर मेरे ज्यों, सहसा रख दी हो
किसी ने वसुंधरा।
सौंप मझे मर्यादाहीन लोक
टूटी पडी है परम्परा।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217