(1895-1963 ई.)
सियारामशरण गुप्त मैथिलीशरण गुप्त के अनुज थे। इनका जन्म चिरगांव, झांसी में हुआ। शिक्षा घर पर ही हुई तथा स्वाध्याय द्वारा इन्होंने संस्कृत, हिंदी, बंगला, गुजराती और अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। 'आद्र्रा, 'दुर्वादल, 'विषाद, 'बापू तथा 'गोपिका इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'गोद, 'नारी, 'अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), 'मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे। सहज आकर्षक शैली तथा भाव और भाषा की सरलता इनकी विशेषता है।
खिलौना
'मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लाल
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल।
व्यथित हो उठी मां बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो!
'खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो!
'राजा के घर! नहीं-नहीं मां, तू मुझको बहकाती है,
इस मिट्टी से खेलेगा क्या राजपुत्र, तू ही कह तो।
फेंक दिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल,
'मैं तो वही खिलौना लूंगा - मचल गया दीना का लाल।
'मैं तो वही खिलौना लूंगा - मचल गया शिशु राजकुमार,
'वह बालक पुचकार रहा था पथ में जिसको बारंबार।
'वह तो मिट्टी का ही होगा, खेलो तुम तो सोने से।
दौड पडे सब दास-दासियां राजपुत्र के रोने से।
'मिट्टी का हो या सोने का, इनमें वैसा एक नहीं,
खेल रहा था उछल-उछलकर वह तो उसी खिलौने से।
राजहठी ने फेंक दिए सब अपने रजत-हेम-उपहार,
'लूंगा वहीं, वही लूंगा मैं! मचल गया वह राजकुमार।
बापू
तेरे तीर्थ-सलिल से प्रभु हे!
मेरी गगरी भरी-भरी।
कल-कल्लोलित धारा पाकर
तट पर ही यह तरी-तरी।
तेरे क्षीरोदधि का पदतल,
जहां शांति लक्ष्मी है अविचल,
फुल्लित-फलित जहां मुक्ताफल,
नहीं ला सकी पहुंच वहां की,
पुण्य-सुधा कल्याण-करी।
पाया, पा सकती थी जितना,
अधिक और भरती यह कितना,
कम क्या, कम क्या, कम क्या इतना?
गहरी नहीं जा सकी तब भी,
तृप्ति पिपासा हरी-हरी।
तेरे तीर्थ सलिल से प्रभु हे,
मेरी गगरी भरी-भरी।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217