(1906-1988 ई.)
सोहनलाल द्विवेदी का जन्म फतेहपुर जिले के बिंदकी गांव में हुआ। इन्होंने हिंदी में एम.ए. किया तथा संस्कृत का भी अध्ययन किया। इन्होंने आजीवन निष्काम भाव से साहित्य सर्जना की। द्विवेदीजी गांधीवादी विचारधारा के प्रतिनिधि कवि हैं। ये अपनी राष्ट्रीय तथा पौराणिक रचनाओं के लिए सम्मानित हुए। इनके मुख्य काव्य-संग्रह हैं- 'भैरवी, 'वासवदत्ता, 'पूजागीत, 'विषपान और 'जय गांधी। इनके कई बाल काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए। ये 'पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित हुए।
वंदना के इन स्वरों में
वंदना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो।
वंदिनी मां को न भूलो,
राग में जब मत्त झूलो,
अर्चना के रत्नकण में, एक कण मेरा मिला लो।
जब हृदय का तार बोले,
शृंखला के बंद खोले,
हों जहां बलि शीश अगणित, एक शिर मेरा मिला लो।
युगावतार गांधी (अंश)
चल पडे जिधर दो डग, मग में, चल पडे कोटि पग उसी ओर
पड गई जिधर भी एक दृष्टि, पड गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके सिर पर निज धरा हाथ, उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया, झुक गए उसी पर कोटि माथ।
हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु! हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि! हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम!
युग बढा तुम्हारी हंसी देख, युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की, खींचते काल पर अमिट रेख।
तुम बोल उठे, युग बोल उठा, तुम मौन बने, युग मौन बना
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर, युग कर्म जगा, युगधर्म तना।
युग- परिवर्तक, युग-संस्थापक, युग संचलाक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें, युग-युग तक युग का नमस्कार!
तुम युग-युग की रूढियां तोड, रचते रहते नित नई सृष्टि
उठती नवजीवन की नीवें, ले नवचेतन की दिव्य दृष्टि।
धर्माडंबर के खंडहर पर, कर पद-प्रहार, कर धराध्वस्त
मानवता का पावन मंदिर, निर्माण कर रहे सृजनव्यस्त!
बढते ही जाते दिग्विजयी, गढते तुम अपना रामराज
आत्माहुति के मणि माणिक से, मढते जननी का स्वर्ण ताज!
तुम कालचक्र के रक्त सने, दशनों को कर से पकड सुदृढ
मानव को दानव के मुंह से, ला रहे खींच बाहर बढ-बढ।
पिसती कराहती जगती के, प्राणों में भरते अभय दान
अधमरे देखते हैं तुमको, किसने आकर यह किया त्राण?
दृढ चरण, सुदृढ करसंपुट से, तुम कालचक्र की चाल रोक
नित महाकाल की छाती पर लिखते करुणा के पुण्य श्लोक!
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217