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हिन्दी के कवि

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हिन्दी के कवि

सोमनाथ

(रचनाकाल 1733-1753ई.)

सोमनाथ नीलकंठ मिश्र के पुत्र थे और भरतपुर महाराज के छोटे भाई प्रताप सिंह के आश्रित थे। सोमनाथ कभी-कभी 'शशिनाथ के नाम से भी कविता करते थे। इनके दो मुख्य ग्रंथ हैं- ' शृंगार-विलास एवं 'रस-पीयूष निधि। शृंगार-विलास में नायिका-भेद हैं। 'रस-पीयूष निधि काव्य-शास्त्र पर एक पांडित्यपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें रस, अलंकार, ध्वनि आदि का विवेचन है। इनकी कविता में सरलता, भावकुता और सहृदयता है।

पद

रचि भूषन आई अलीन के संग तैं, सासु के पास बिराजि गई।
मुखचंद-मऊखनि सौं 'ससिनाथ, सबै घर मैं छबि छाजि गई।
इनको पति ऐहै सकारे सखी कह्यो, यौं सुनि कै हिय लाजि गई।
सुख पाइकै नार नवाइ तिया, मुसक्याइ कै भौन में भाजि गई॥

मंदिर की दुति यौं दरसी, जनु रूप के पत्र अलेखन लागे।
हौं गई चाँदनी हेरन को हतँ, क्यौं  घरीक निमेष न लागे॥
डीठ परयो नयो कौतुक ह्वाँ, 'ससिनाथजू यातैं बडे खन लागे।
पीठि दै, चंद की ओर चकोर, सबै मिलि मो मुख देखन लागे॥

घटि कै कटि रंचक छीन भई, गति नैननि की तिरछानि लगी।
'ससिनाथ कहै उर ऊपर तैं, ऍंचरा उघरे ते लजानि लगी॥
लरकाई के खेल पछेल कछूक, सयानी सखीन पत्यानि लगी।
पिया नाम सुने तिय द्योसक तैं, दुरिकै मुरिकै मुस्क्यानि लगी॥

नेकु न चैन परै दिन रैनि, कहा कहिए सुख बारिद पै तिनि।
चंद्रक नीर तैं सौ गुनि होति, बुझै न जहार उपाय ठयो गिनि॥
टेरहीं सौं ब्रजबालनि के उर औरहिं आगि को बीच बयो जिनि।
री जिहि बंस भई बँसुरी, तिहि बंस को बंस निबंस भयो किनि॥

आली बहु वासर, बिताए ध्यान धरि-धरि,
तिनको सुफल, नैन दरसन पावेंगे।
होत हैं री सगुन, सुहावने प्रभात ही तैं,
अंगन में अधिक, विनोद सरसावेंगे॥

'सोमनाथ हरै-हरै, बतियाँ अनूठी कहि,
गूढ बिरहानल, की तपनि बुझावेंगे।
सबही तैं प्यारे प्रान, प्रानन तें प्यारे पति,
पतिँ तैं प्यारे ब्रजपति आज आवेंगे।
कुंडल मुकुट, कांट काछनी, तिलक भाल,
'सोमनाथ कहैं, मंद गवन मनोहरा।
वारिये री कोटि, मनमथ की निकाई देखि,
भृकुटी नचावै री रचावै चित मोहरा॥

बडे-बडे नैन, पुनि साँवरे बरन वर,
लोगनि कौ लंगर, लुभावै पढि दोहरा।
आवै नित मुरली बजावै, तान गावै यह,
छरहरौ कौन कौं छबीलौ छैल छोहरा॥

अधखुलीं पलकैं, अलक लटकति मंजु,
चंदमुखी निकट, भुजंगिनी भुलानी सी।
मरगजी सारी, अंग-भूषन कँ के कँ,
पीछे संग सोहतिं, सहेलीं अरसानी सी॥

डगै डगमगी, निसि जगी, सब 'सोमनाथ,
झलकैं कपोलनि में, पीक सुखसानी सी।
एडि ऍंगिराति औ जंभाँति, मुसक्याति बाल,
मंद-मंद आवति, पुरंदर की रानी सी॥

 

 

 

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