(17वीं शताब्दी)
वाजिद जाति के पठान थे, किन्तु हिंदू हो गए थे। कहते हैं एक बार ये शिकार खेलने गए और हिरणी पर तीर चलाने वाले थे कि हृदय में करुणा का संचार हुआ और मन की वृत्ति बदल गई। गुरु के हेतु व्याकुल हुए। दादू दयाल ने कृपा कर इन्हें अपना लिया। उनके 52 पट्टशिष्यों में इनकी भी गणना है। इनके 'उत्पत्तिनामा, 'प्रेमनामा, 'गरमनामा आदि छोटे-छोटे 14 ग्रंथ प्राप्त हैं। ये रचनाएँ 'पंचामृत नाम से संग्रहित हैं। अरिल्ल, दोहे और चौपाई इनके प्रिय छंद हैं। इनकी रचना में प्रभु और गुरु की कृपा से निर्मल जीवन जीने के उपदेश हैं।
पद
कहियो जाय सलाम हमारी राम कूँ।
नैण रहे झड लाय तुम्हारे नाम कूँ॥
कमल गया कुमलाय कल्याँ भी जायसी।
हरि हाँ, 'वाजिद, इस बाडी में बहुरि न भँवरा आयसी॥
चटक चाँदणी रात बिछाया ढोलिया।
भर भादव की रैण पपीहा बोलिया॥
कोयल सबद सुणाय रामरस लेत है।
हरि हाँ, वाजिद, दाइये ऊपर लूण पपीहा देत है॥
हरिजन बैठा होय तहाँ चल जाइये।
हिरदै उपजै ज्ञान रामगुण गाइये॥
परिहरिये वह ठाँव भगति नहिं राम की।
हरि हाँ, 'वाजिद, बींद बिणी जान कहो किस काम की॥
सतगुरु शरणें आयक तामस त्यागिये।
बुरी भली कह जाए ऊठ नाहिं लागिये॥
उठ लाग्या में राड, राड में मीच है।
हरि हाँ, 'वाजिद, जा घर प्रगटै क्रोध सोइ घर नीच है।
बडा भया सो कहा बरस सौ साठ का।
घणा पढ्या तो कहा चतुर्विध पाठ का॥
छापा तिलक बनाय कमंडल काठ का।
हरि हाँ, 'वाजिद, एक न आया हाथ पँसेरी आठ का॥
देह गेह में नेह निवारे दीजिये।
राजी जासें राम काम सोइ कीजिये॥
रह्या न बेसी कोय रंक अरु राव रे।
हरि हाँ, 'वाजिद, कर ले अपना काज बन्या हद दाव रे॥
नहिं है तेरा कोय नहीं तू कोय का।
स्वारथ का संसार बना दिन दोय का॥
मेरी-मेरी मान फिरत अभिमान में।
हरि हाँ, 'वाजिद, इतराते नर मूढ एहि अज्ञान में॥
केते अर्जुन भीम जहाँ जसवंत-से।
केते गिनैं असंख्य बली हनुमंत-से॥
जिनकी सुन-सुन हाँक महागिरि फाटते।
हरि हाँ, 'वाजिद, तिन धर खायो काल जो इंद्रहि डाटते॥
कुंजर-मन मद-मत्त मरै तो मारिये।
कामिनि कनक कलेस टरै तो टारिये॥
हरि भक्तन सों नेह पलै तो पालिये।
हरि हाँ, 'वाजिद, राम-भजन में देह गलै तो गालिये॥
एकै नाम अनंत किँके लीजिये।
जन्म-जन्म के पाप चुनौती दीजिये॥
ले कर चिनगी आन धरै तू अब्ब रे!
हरि हाँ, 'वाजिद, कोठी भरी कपास जाय जर सब्ब रे!
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217