(जन्म 1928 ई.)
वीरेन्द्र मिश्र का जन्म मुरैना, मध्यप्रदेश में हुआ। ये आकाशवाणी के मानद प्रोडयूसर हैं। इन्होंने फिल्मों के लिए भी गीत लिखे हैं। ये नवगीत विधा के सरस गीतकार हैं। इनके मुख्य काव्य-संग्रह हैं : 'गीतम, 'अविराम चल मधुवंती, 'लेखनी बेला, 'झुलसा है छायानट धूप में, 'काले मेघा पानी दे तथा 'शांति गंधर्व। इन्हें 'देव पुरस्कार एवं 'निराला पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
मेघयात्री
रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं-
पुरवाई हमें मत ढकेलो,
हम प्यासे बादल हैं, इसी व्योम-मंडप के
दे दो ठंडी झकोर
और दाह ले लो।
क्या जाने कब फिर यह बरसाती सांझ मिले,
गठरी में बांध दो फुहारें-
पता नहीं कण्ठ कहां रुंध जाए भीड में,
जेबों में डाल दो मल्हारें,
स्वयं छोड देंगे हम, गुंजित नभ मंच ये-
दे दो एकांत जरा
वाह-वाह ले लो।
हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे-
दूर किसी अनजाने देश में,
जहां छूट जाएंगे नीले आकाश कई-
होंगे हम मटमैले वेश में,
मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम-
दे दो सीमंत गंध
जल-प्रवाह ले लो।
घूम रहे तेज समय के पहिए देखो तो-
व्यक्ति और मौसम की बात क्या,
पानी में चली गई वय की यह गेंद तो-
वह भी फिर आएगी हाथ क्या
करो नहीं झूठा प्रतिरोध मत्स्य गंधा! तुम,
होना जो शेष अभी
वह गुनाह ले लो।
आस्था का दिशा-संकेत
आंख क्या कह रही है, सुनो-
अश्रु को एक दर्पण न दो।
और चाहे मुझे दान दो
एक टूटा हुआ मन न दो।
तुम जुडों शृंखला की कडी
धूप की यह घडी पर्व है
हर किरन को चरागाह की
रागिनी पर बडा गर्व है
जो कभी है घटित हो चुका
जो अतल में कहीं सो चुका
देवता को सृजन-द्वार पर
स्वप्न का वह विसर्जन न दो
एक गरिमा भरो गीत में
सृष्टि हो जाए महिमामयी
नेह की बांह पर सिर धरो
आज के ये निमिष निर्णयी
आंचलिक प्यास हो जो, कहो
साथ आओ, उमड कर बहो
जिंदगी की नयन-कोर में
डबडबाया समर्पण न दो।
जो दिवस सूर्य से दीप्त हो
चंद्रमा का नहीं वश वहां
जिस गगन पर मढी धूप हो
व्यर्थ होती अमावस वहां
गीत है जो, सुनो, झूम लो
सिर्फ मुखडा पढो, चूम लो
तैरने दो समय की नदी
डूबने का निमंत्रण न दो।
प्रतीक्षा की समीक्षा
पत्र कई आए
पर जिसको आना था
वह नहीं आया
- व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।
सहन में फिर उतरा पीला-सा हाशिया
साधों पर पांव धरे चला गया डाकिया
और रोज-जैसा
मटमैला दिन गुजरा
गीत नहीं गाया
- व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।
भरे इंतजारों से एक और गठरी
रह-रहकर ऊंघ रही है पटेल नगरी
अधलिखी मुखरता
कह ही तो गई वाह!
खूब गुनगुनाया
-व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।
खिडकी मैं बैठा जो गीत है पुराना
देख रहा पत्रों का उड रहा खजाना
पूछ रहा मुझसे
पतझर के पत्तों में
कौन है पराया
- व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217