(1895-1988 ई.)
वियोगी हरि का जन्म छतरपुर राज्य में कान्यकुब्ज ब्राह्मण वंश में हुआ था। पालन-पोषण एवं शिक्षा ननिहाल में घर पर ही हुई। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन, प्राचीन कविताओं का संग्रह तथा संतों की वाणियों का संकलन किया। कविता, नाटक, गद्यगीत, निबंध तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखी हैं। ये हरिजन सेवक संघ, गाँधी स्मारक निधि तथा भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे। वियोगी हरि ने लगभग 40 पुस्तकें रची हैं। इनके मुख्य कविता संग्रह हैं- 'भावना, 'प्रार्थना, 'अंतर्नाद, 'प्रेम-शतक, 'मेवाड-केसरी तथा 'वीर-सतसई आदि। ये आधुनिक ब्रजभाषा के प्रमुख कवि, हिंदी के सफल गद्यकार तथा समाज-सेवी संत थे। 'वीर-सतसई पर इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला था।
महाराणा प्रताप
अणु-अणु पै मेवाड के, छपी तिहारी छाप।
तेरे प्रखर प्रताप तें, राणा प्रबल प्रताप॥
जगत जाहिं खोजत फिरै, सो स्वतंत्रता आप।
बिकल तोहिं हेरत अजौं, राणा निठुर प्रताप॥
हे प्रताप! मेवाड मे, तुहीं समर्थ सनाथ।
धनि-धनि तेरे हाथ ये, धनि-धनि तेरो माथ॥
रजपूतन की नाक तूँ, राणा प्रबल प्रताप।
है तेरी ही मूँछ की राजस्थान में छाप॥
काँटे-लौं कसक्यौ सदा, को अकबर-उर माहिं।
छाँडि प्रताप-प्रताप जग, दूजो लखियतु नाहिं॥
ओ प्रताप मेवाड के! यह कैसो तुव काम?
खात लखनु तुव खडग पै, होत काल कौ नाम॥
उँमडि समुद्र लौं, ठिलें आप तें आप।
करुण-वीर-रस लौं मिले, सक्ता और प्रताप॥
देशद्रोह
भूलेहुँ कबहुँ न जाइए, देस-बिमुखजन पास।
देश-विरोधी-संग तें, भलो नरक कौ बास॥
सुख सों करि लीजै सहन, कोटिन कठिन कलेस।
विधना, वै न मिलाइयो, जे नासत निज देस॥
सिव-बिरंचि-हरिलोकँ, बिपत सुनावै रोय।
पै स्वदेस-बिद्रोहि कों, सरन न दैहै कोय॥
व्यर्थ गर्व
अहे गरब कत करत तूँ खरब पाय अधिकार।
रहे न जग दसकंध-से दिग्विजयी जुगचार॥
कनक-पुरी जब लंक-सी झुरी अछत दसकंध।
तुव झोपरियाँ काँस की कौन पूँछिहै अंध॥
गुरु गोविंदसिंह
जय अकाल-आनंद-भव नव मकरंद-मलिंद।
शक्ति-साधना सिध्दवर, असिधर गुरुगोविंद॥
पराधीनता-सिंधु मधि, डूबत हिंदू हिंद।
तेरे कर पतवार अब, पतधर गुरुगोविंद॥
धर्म-धुरंधर, कर्म-धर, बलधर बखत बलंद।
जयत धनुर्धर, तेग धर, तेग बहादुर-नंद॥
असि-ब्रत धारयो धर्म पै, उमँगि उधारयो हिंद।
किए सिक्ख तें सिंह सब, धनि-धनि गुरुगोविंद॥
दसवें गुरु के राज में रही हिंद-पत-लाज।
औरंगशाही पै गिरी बाह गुरू की गाज॥
रहती कहँ हिंदून की आन बान अरु शान।
ढाल न होती आनि जो गुरुगोविंद-कृपान॥
संघ शक्ति-ब्रत-मित्र कै, वृषगत बिप्लव मित्र।
कै पवित्र बलि-चित्र-पट गुरुगोविंद-चरित्र॥
दिखी न दूजी जाति कहुँ सिक्खन-सी मजबूत।
तेग बहादुर-सो पिता, गुरुगोविंद-सो पूत॥
'माथ रहौ वा ना रहौ, तजै न सत्य अकाल।
कहत-कहत ही चुनि गए, धनि, गुरुगोविंद-लाल॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217