खन्ना ने कहकहा मारा, मानो यह कथन हँसने के ही योग्य था। 'उन शर्तों पर मैं आपसे भी वही सूद ले लूँगा। हमने उनकी जायदाद रेहन रख ली है और शायद यह जायदाद फिर उनके हाथ न जायगी।' 'मैं भी अपने कोई जायदाद निकाल दूँगा। नौ परसेंट देने से यह कहीं अच्छा है कि फालतू जायदाद अलग कर दूँ। मेरी जैकसन रोड वाली कोठी आप निकलवा दें। कमीशन ले लीजिएगा।' 'उस कोठी का सुभीते से निकलना जरा मुश्किल है। आप जानते हैं, वह जगह बस्ती से कितनी दूर है, मगर खैर, देखूँगा। आप उसकी कीमत का क्या अंदाजा करते हैं?' रायसाहब ने एक लाख पच्चीस हजार बताए। पंद्रह बीघे जमीन भी तो है उसके साथ। खन्ना स्तंभित हो गए। बोले - आप आज से पंद्रह साल पहले का स्वप्न देख रहे हैं रायसाहब! आपको मालूम होना चाहिए कि इधर जायदादों के मूल्य में पचास परसेंट की कमी हो गई है। रायसाहब ने बुरा मान कर कहा - जी नहीं, पद्रंह साल पहले उसकी कीमत डेढ़ लाख थी। 'मैं खरीदार की तलाश में रहूँगा, मगर मेरा कमीशन पाँच प्रतिशत होगा आपसे।' 'औरों से शायद दस प्रतिशत हो क्यों, क्या करोगे इतने रुपए ले कर?' 'आप जो चाहें दे दीजिएगा। अब तो राजी हुए। शुगर के हिस्से अभी तक आपने न खरीदे? अब बहुत थोड़े-से हिस्से बच रहे हैं। हाथ मलते रह जाइएगा। इंश्योरेंस की पॉलिसी भी आपने न ली। आपमें टाल-मटोल की बुरी आदत है। जब अपने लाभ की बातों का इतना टाल-मटोल है, तब दूसरों को आप लोगों से क्या लाभ हो सकता है! इसी से कहते हैं, रियासत आदमी की अक्ल चर जाती है। मेरा बस चले तो मैं ताल्लुकेदारों की रियासतें जब्त कर लूँ।' मिस्टर तंखा मालती पर जाल फेंक रहे थे। मालती ने साफ कह दिया था कि वह एलेक्शन के झमेले में नहीं पड़ना चाहती, पर तंखा आसानी से हार मानने वाले व्यक्ति न थे। आ कर कुहनियों के बल मेज पर टिक कर बोले - आप जरा उस मुआमले पर फिर विचार करें। मैं कहता हूँ, ऐसा मौका शायद आपको फिर न मिले। रानी साहब चंदा को आपके मुकाबले में रुपए में एक आना भी चांस नहीं है। मेरी इच्छा केवल यह है कि कौंसिल में ऐसे लोग जायँ, जिन्होंने जीवन में कुछ अनुभव प्राप्त किया और जनता की कुछ सेवा की है। जिस महिला ने भोग-विलास के सिवा कुछ जाना ही नहीं, जिसने जनता को हमेशा अपनी कार का पेट्रोल समझा, जिसकी सबसे मूल्यवान सेवा वे पार्टियाँ हैं, जो वह गर्वनरों और सेक्रेटरियों को दिया करती हैं, उनके लिए इस कौंसिल में स्थान नहीं है। नई कौंसिल में बहुत कुछ अधिकार प्रतिनिधियों के हाथ में होगा और मैं नहीं चाहता कि वह अधिकार अनाधिकारियों के हाथ में जाय।
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