खन्ना ने रोनी सूरत बना कर कहा - अब मिस्टर मेहता पर निगाह है। मैं तो गिर गया। मिस्टर मेहता का भाषण शुरू हुआ - 'देवियो, जब मैं इस तरह आपको संबोधित करता हूँ, तो आपको कोई बात खटकती नहीं। आप इस सम्मान को अपना अधिकार समझती हैं, लेकिन आपने किसी महिला को पुरुषों के प्रति 'देवता' का व्यवहार करते सुना है? उसे आप देवता कहें, तो वह समझेगा, आप उसे बना रही हैं। आपके पास दान देने के लिए दया है, श्रद्धा है, त्याग है। पुरुष के पास दान के लिए क्या है? वह देवता नहीं, लेवता है। वह अधिकार के लिए हिंसा करता है, संग्राम करता है, कलह करता है...' तालियाँ बजीं। रायसाहब ने कहा - औरतों को खुश करने का इसने कितना अच्छा ढंग निकाला। 'बिजली' संपादक को बुरा लगा - कोई नई बात नहीं। मैं कितनी ही बार यह भाव व्यक्त कर चुका हूँ। मेहता आगे बढ़े - इसलिए जब मैं देखता हूँ, हमारी उन्नत विचारों वाली देवियाँ उस दया और श्रद्धा और त्याग के जीवन से असंतुष्ट हो कर संग्राम और कलह और हिंसा के जीवन की ओर दौड़ रही हैं और समझ रही हैं कि यही सुख का स्वर्ग है, तो मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकता। मिसेज खन्ना ने मालती की ओर सगर्व नेत्रों से देखा। मालती ने गर्दन झुका ली। खुर्शेद बोले - अब कहिए। मेहता दिलेर आदमी है। सच्ची बात कहता है और मुँह पर। 'बिजली' संपादक ने नाक सिकोड़ी - अब वह दिन लद गए, जब देवियाँ इन चकमों में आ जाती थीं। उनके अधिकार हड़पते जाओ और कहते जाओ, आप तो देवी हैं, लक्ष्मी हैं, माता हैं। मेहता आगे बढ़े - स्त्री को पुरुष के रूप में, पुरुष के कर्म में रत देख कर मुझे उसी तरह वेदना होती है, जैसे पुरुष को स्त्री के रूप में, स्त्री के कर्म करते देख कर। मुझे विश्वास है, ऐसे पुरुषों को आप अपने विश्वास और प्रेम का पात्र नहीं समझतीं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, ऐसी स्त्री भी पुरुष के प्रेम और श्रद्धा का पात्र नहीं बन सकती। खन्ना के चेहरे पर दिल की खुशी चमक उठी। रायसाहब ने चुटकी ली - आप बहुत खुश हैं खन्ना जी! खन्ना बोले - मालती मिलें, तो पूछूँ। अब कहिए।
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