तालियाँ बजीं। हाल हिल उठा। रायसाहब ने गदगद हो कर कहा - मेहता वही कहते हैं, जो इनके दिल में है। ओंकारनाथ ने टीका की - लेकिन बातें सभी पुरानी हैं, सड़ी हुई। 'पुरानी बात भी आत्मबल के साथ कही जाती है, तो नई हो जाती है।' 'जो एक हजार रुपए हर महीने फटकार कर विलास में उड़ाता हो, उसमें आत्मबल जैसी वस्तु नहीं रह सकती। यह केवल पुराने विचार की नारियों और पुरुषों को प्रसन्न करने के ढंग हैं।' खन्ना ने मालती की ओर देखा - यह क्यों फूली जा रही है? इन्हें तो शरमाना चाहिए। खुर्शेद ने खन्ना को उकसाया - अब तुम भी एक तकरीर कर डालो खन्ना, नहीं मेहता तुम्हें उखाड़ फेंकेगा। आधा मैदान तो उसने अभी मार लिया है। खन्ना खिसिया कर बोले - मेरी न कहिए। मैंने ऐसी कितनी चिड़िया फँसा कर छोड़ दी हैं। रायसाहब ने खुर्शेद की तरफ आँख मार कर कहा - आजकल आप महिला-समाज की तरफ आते-जाते हैं। सच कहना, कितना चंदा दिया? खन्ना पर झेंप छा गई - मैं ऐसे समाजों को चंदे नहीं दिया करता, जो कला का ढोंग रच कर दुराचार फैलाते हैं। मेहता का भाषण जारी था - 'पुरुष कहता है, जितने दार्शनिक और वैज्ञानिक आविष्कारक हुए हैं, वह सब पुरुष थे। जितने बड़े-बड़े महात्मा हुए हैं, वह सब पुरुष थे। सभी योद्धा, सभी राजनीति के आचार्य, बड़े-बड़े नाविक सब कुछ पुरुष थे, लेकिन इन बड़ों-बड़ों के समूहों ने मिल कर किया क्या? महात्माओं और धर्म-प्रवर्तकों ने संसार में रक्त की नदियाँ बहाने और वैमनस्य की आग भड़काने के सिवा और क्या किया, योद्धाओं ने भाइयों की गर्दनें काटने के सिवा और क्या यादगार छोड़ी, राजनीतिज्ञों की निशानी अब केवल लुप्त साम्राज्यों के खंडहर रह गए हैं, और आविष्कारकों ने मनुष्य को मशीन का गुलाम बना देने के सिवा और क्या समस्या हल कर दी? पुरुषों की इस रची हुई संस्कृति में शांति कहाँ है? सहयोग कहाँ है?' ओंकारनाथ उठ कर जाने को हुए - विलासियों के मुँह से बड़ी-बड़ी बातें सुन कर मेरी देह भस्म हो जाती है।
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