मिसेज खन्ना दबी जबान से बोलीं - जब नशा ठहर जाय, तो कहिए। मेहता ने विरक्त भाव से कहा - मेरे जैसे किताब के कीड़ों को कौन औरत पसंद करेगी देवी जी! मैं तो पक्का आदर्शवादी हूँ। मिसेज खन्ना ने अपने पति को कार की तरफ जाते देखा, तो उधर चली गईं। मिर्जा भी बाहर निकल गए। मेहता ने मंच पर से अपने छड़ी उठाई और बाहर जाना चाहते थे कि मालती ने आ कर उनका हाथ पकड़ लिया और आग्रह-भरी आँखों से बोली - आप अभी नहीं जा सकते। चलिए, पापा से आपकी मुलाकात कराऊँ और आज वहीं खाना खाइए। मेहता ने कान पर हाथ रख कर कहा - नहीं, मुझे क्षमा कीजिए। वहाँ सरोज मेरी जान खा जायगी। मैं इन लड़कियों से बहुत घबराता हूँ। 'नहीं-नहीं, मैं जिम्मा लेती हूँ, जो वह मुँह भी खोले।' 'अच्छा, आप चलिए, मैं थोड़ी देर में आऊँगा।' 'जी नहीं, यह न होगा। मेरी कार सरोज ले कर चल दी। आप मुझे पहुँचाने तो चलेंगे ही।' दोनों मेहता की कार में बैठे। कार चली। एक क्षण बाद मेहता ने पूछा - मैंने सुना है, खन्ना साहब अपनी बीबी को मारा करते हैं। तब से मुझे इनकी सूरत से नफरत हो गई। जो आदमी इतना निर्दयी हो, उसे मैं आदमी नहीं समझता। उस पर आप नारी जाति के बड़े हितैषी बनते हैं। तुमने उन्हें कभी समझाया नहीं? मालती उद्विग्न हो कर बोली - ताली हमेशा दो हथेलियों से बजती है, यह आप भूले जाते हैं। 'मैं तो ऐसे किसी कारण की कल्पना ही नहीं कर सकता कि कोई पुरुष अपने स्त्री को मारे।' 'चाहे स्त्री कितनी ही बदजबान हो?' 'हाँ, कितनी ही।' 'तो आप एक नए किस्म के आदमी हैं।' 'अगर मर्द बदमिजाज है, तो तुम्हारी राय में उस मर्द पर हंटरों की बौछार करनी चाहिए, क्यों?' 'स्त्री जितनी क्षमाशील हो सकती है, पुरुष नहीं हो सकता। आपने खुद आज यह बात स्वीकार की है।'
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