मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-20

पेज-202

इसी तरह गोबर ने दातादीन को भी रगड़ा। भोजन करने जा रहे थे। गोबर को देख कर प्रसन्न हो कर बोले - मजे में तो रहे गोबर? सुना, वहाँ कोई अच्छी जगह पा गए हो। मातादीन को भी किसी हीले से लगा दो न? भंग पी कर पड़े रहने के सिवा यहाँ और कौन काम है!

गोबर ने बनाया - तुम्हारे घर में किस बात की कमी है महाराज, जिस जजमान के द्वार पर जा कर खड़े हो जाओ, कुछ न कुछ मार ही लाओगे। जनम में लो, मरन में लो, सादी में लो, गमी में लो, खेती करते हो, लेन-देन करते हो, दलाली करते हो, किसी से कुछ भूल-चूक हो जाए, तो डाँड़ लगा कर उसका घर लूट लेते हो। इतनी कमाई से पेट नहीं भरता? क्या करोगे बहुत-सा धन बटोर कर कि साथ ले जाने की कोई जुगुत निकाल ली है?

दातादीन ने देखा, गोबर कितनी ढिठाई से बोल रहा है, अदब और लिहाज जैसे भूल गया। अभी शायद नहीं जानता कि बाप मेरी गुलामी कर रहा है। सच है, छोटी नदी को उमड़ते देर नहीं लगती, मगर चेहरे पर मैल नहीं आने दिया। जैसे बड़े लोग बालकों से मूँछें उखड़वा कर भी हँसते हैं, उन्होंने भी इस फटकार को हँसी में लिया और विनोद-भाव से बोले - लखनऊ की हवा खा के तू बड़ा चंट हो गया है गोबर! ला, क्या कमा के लाया है, कुछ निकाल। सच कहता हूँ गोबर, तुम्हारी बहुत याद आती थी। अब तो रहोगे कुछ दिन?

'हाँ, अभी तो रहूँगा कुछ दिन। उन पंचों पर दावा करना है, जिन्होंने डाँड़ के बहाने मेरे डेढ़ सौ रुपए हजम किए हैं। देखूँ, कौन मेरा हुक्का-पानी बंद करता है और कैसे बिरादरी मुझे जात बाहर करती है?'

यह धमकी दे कर वह आगे बढ़ा। उसकी हेकड़ी ने उसके युवक भक्तों को रोब में डाल दिया था।

एक ने कहा - कर दो नालिस गोबर भैया! बुड्ढा काला साँप है - जिसके काटे का मंतर नहीं। तुमने अच्छी डाँट बताई। पटवारी के कान भी जरा गरमा दो। बड़ा मुतगन्नी है दादा! बाप-बेटे में आग लगा दे, भाई-भाई में आग लगा दे। कारिंदे से मिल कर असामियों का गला काटता है। अपने खेत पीछे जोतो, पहले उसके खेत जोत दो। अपनी सिंचाई पीछे करो, पहले उसकी सिंचाई कर दो।

गोबर ने मूँछों पर ताव दे कर कहा - मुझसे क्या कहते हो भाई, साल-भर में भूल थोड़े ही गया। यहाँ मुझे रहना ही नहीं है, नहीं एक-एक को नचा कर छोड़ता। अबकी होली धूमधाम से मनाओ और होली का स्वाँग बना कर इन सबों को खूब भिगो-भिगो कर लगाओ।

होली का प्रोग्राम बनने लगा। खूब भंग घुटे, दूधिया भी, रंगीन भी, और रंगों के साथ कालिख भी बने और मुखियों के मुँह पर कालिख ही पोती जाए। होली में कोई बोल ही क्या सकता है! फिर स्वाँग निकले और पंचों की भद्द उड़ाई जाए। रुपए-पैसे की कोई चिंता नहीं। गोबर भाई कमा कर लाए हैं।

 

 

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