मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-26

पेज-265

नोहरी ने कहा - लड़की तो खूब सयानी हो गई है।

धनिया बोली - लड़की की बाढ़ रेंड़ की बाढ़ है। है अभी कै दिन की!

'बर तो ठीक हो गया है न?'

'हाँ, बर तो ठीक है। रुपए का बंदोबस्त हो गया, तो इसी महीने में ब्याह कर देंगे।'

नोहरी दिल की ओछी थी। इधर उसने जो थोड़े-से रुपए जोड़े थे, वे उसके पेट में उछल रहे थे। अगर वह सोना के ब्याह के लिए कुछ रुपए दे दे, तो कितना यश मिलेगा। सारे गाँव में उसकी चर्चा हो जायगी। लोग चकित हो कर कहेंगे, नोहरी ने इतने रुपए दिए। बड़ी देवी है। होरी और धनिया दोनों घर-घर उसका बखान करते फिरेंगे। गाँव में उसका मान-सम्मान कितना बढ़ जायगा। वह ऊँगली दिखाने वालों का मुँह सी देगी। फिर किसकी हिम्मत है, जो उस पर हँसे, या उस पर आवाजें कसे? अभी सारा गाँव उसका दुश्मन है। तब सारा गाँव उसका हितैषी हो जायगा। इस कल्पना से उसकी मुद्रा खिल गई।

'थोड़े-बहुत से काम चलता हो, तो मुझसे ले लो, जब हाथ में रुपए आ जायँ तो दे देना।'

होरी और धनिया दोनों ही ने उसकी ओर देखा। नहीं, नोहरी दिल्लगी नहीं कर रही है। दोनों की आँखों में विस्मय था, कृतज्ञता थी, संदेह था और लज्जा थी। नोहरी उतनी बुरी नहीं है, जितना लोग समझते हैं।

नोहरी ने फिर कहा - तुम्हारी और हमारी इज्जत एक है। तुम्हारी हँसी हो तो क्या मेरी हँसी न होगी? कैसे भी हुआ हो, पर अब तो तुम हमारे समधी हो।

होरी ने सकुचाते हुए कहा - तुम्हारे रुपए तो घर में ही हैं, जब काम पड़ेगा, ले लेंगे। आदमी अपनों ही का भरोसा तो करता है, मगर ऊपर से इंतजाम हो जाय, तो घर के रुपए क्यों छुए।

धनिया ने अनुमोदन किया - हाँ, और क्या!

नोहरी ने अपनापन जताया - जब घर में रुपए हैं, तो बाहर वालों के सामने हाथ क्यों फैलाओ? सूद भी देना पड़ेगा, उस पर इस्टाम लिखो, गवाही कराओ, दस्तूरी दो, खुसामद करो। हाँ, मेरे रुपए में छूत लगी हो, तो दूसरी बात है।

होरी ने सँभाला - नहीं, नहीं नोहरी, जब घर में काम चल जायगा तो बाहर क्यों हाथ फैलाएँगे, लेकिन आपस वाली बात है। खेती-बारी का भरोसा नहीं। तुम्हें जल्दी कोई काम पड़ा और हम रुपए न जुटा सके, तो तुम्हें भी बुरा लगेगा और हमारी जान भी संकट में पड़ेगी। इससे कहता था। नहीं, लड़की तो तुम्हारी है।

'मुझे अभी रुपए की ऐसी जल्दी नहीं है।'

'तो तुम्हीं से ले लेंगे। कन्यादान का फल भी क्यों बाहर जाए?'

'कितने रुपए चाहिए?'

'तुम कितने दे सकोगी?'

'सौ में काम चल जायगा?'

होरी को लालच आया। भगवान ने छप्पर फाड़ कर रुपए दिए हैं, तो जितना ले सके, उतना क्यों न ले।

'सौ में भी चल जायगा। पाँच सौ में भी चल जायगा। जैसा हौसला हो।'

'मेरे पास कुल दो सौ रुपए हैं, वह मैं दे दूँगी।'

 

 

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