मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-29

पेज-290

भोला के खून में कुछ स्फूर्ति आई। बोला - तो तुम्हारी यही सलाह है?

धनिया बोली - हाँ, मेरी यही सलाह है। अब सौ-पचास बरस तो जीओगे नहीं। समझ लेना, इतनी ही उमिर थी।

होरी ने अब की जोर से फटकारा - चुप रह, बड़ी आई है वहाँ से सतवंती बनके। जबरदस्ती चिड़िया तक तो पिंजड़े में रहती नहीं, आदमी क्या रहेगा? तुम उसे छोड़ दो भोला और समझ लो, मर गई, और जा कर अपने बाल-बच्चों में आराम से रहो। दो रोटी खाओ और राम का नाम लो। जवानी के सुख अब गए। वह औरत चंचल है, बदनामी और जलन के सिवा तुम उससे कोई सुख न पाओगे।

भोला नोहरी को छोड़ दे, असंभव! नोहरी इस समय भी उसकी ओर रोष-भरी आँखों से तरेरती हुई जान पड़ती थी, लेकिन नहीं, भोला अब उसे छोड़ ही देगा। जैसा कर रही है, उसका फल भोगे।

आँखों में आँसू आ गए। बोला - होरी भैया, इस औरत के पीछे मेरी जितनी साँसत हो रही है, मैं ही जानता हूँ। इसी के पीछे कामता से मेरी लड़ाई हुई। बुढ़ापे में यह दाग भी लगना था, वह लग गया। मुझे रोज ताना देती है कि तुम्हारी तो लड़की निकल गई। मेरी लड़की निकल गई, चाहे भाग गई, लेकिन अपने आदमी के साथ पड़ी तो है, उसके सुख-दु:ख की साथिन तो है। इसकी तरह तो मैंने औरत ही नहीं देखी। दूसरों के साथ तो हँसती है, मुझे देखा तो कुप्पे-सा मुँह फुला लिया। मैं गरीब आदमी ठहरा, तीन-चार आने रोज की मजूरी करता हूँ। दूध-दही, माँस-मछली, रबड़ी-मलाई कहाँ से लाऊँ!

भोला यहाँ से प्रतिज्ञा करके अपने घर गए। अब बेटों के साथ रहेंगे, बहुत धक्के खा चुके, लेकिन दूसरे दिन प्रात:काल होरी ने देखा, तो भोला दुलारी सहुआइन की दुकान से तमाखू लिए जा रहे थे।

होरी ने पुकारना उचित न समझा। आसक्ति में आदमी अपने बस में नहीं रहता! वहाँ से आ कर धनिया से बोला - भोला तो अभी वहीं है। नोहरी ने सचमुच इन पर कोई जादू कर दिया है।

 

 

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