मीनाक्षी ने उसकी ओर घृणा से देख कर कहा - हाँ, तू निरपराध है। जानती है न, मैं कौन हूँ। चली जा, अब कभी यहाँ न आना। हम स्त्रियाँ भोग-विलास की चीजें हैं ही, तेरा कोई दोष नहीं। वेश्या ने उसके चरणों पर सिर रख कर आवेश में कहा - परमात्मा आपको सुखी रखे। जैसा आपका नाम सुनती थी, वैसा ही पाया। 'सुखी रहने से तुम्हारा क्या आशय है?' 'आप जो समझें महारानी जी।' 'नहीं, तुम बताओ।' वेश्या के प्राण नखों में समा गए। कहाँ से कहाँ आशीर्वाद देने चली। जान बच गई थी, चुपके अपनी राह लेनी चाहिए थी, दुआ देने की सनक सवार हुई। अब कैसे जान बचे? डरती-डरती बोली - हुजूर का एकबाल बढ़े, मरतबा बढ़े, नाम बढ़े। मीनाक्षी मुस्कराई - हाँ, ठीक है।
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