डाक्टर मेहता अगर जरा गौर करते, तो उन्हें मालूम होता कि उनमें और मिर्जा में कोई भेद नहीं, केवल शब्दों का हेर-गेर है, पर बहस की गरमी में गौर करने का धैर्य कहा? गर्म हो कर बोले - मुआफ कीजिए, मिर्जा साहब, जब तक दुनिया में दौलत वाले रहेंगे, वेश्याएँ भी रहेंगी। आपकी मंडली अगर सफल भी हो जाए, हालाँकि मुझे उसमें बहुत संदेह है, तो आप दस-पाँच औरतों से ज्यादा उनमें कभी न ले सकेंगे, और वह भी थोड़े दिनों के लिए। सभी औरतों में नाटय करने की शक्ति नहीं होती, उसी तरह जैसे सभी आदमी कवि नहीं हो सकते। और यह भी मान लें कि वेश्याएँ आपकी मंडली में स्थायी रूप से टिक जायँगी, तो भी बाजार में उनकी जगह खाली न रहेगी। जड़ पर जब तक कुल्हाड़े न चलेंगे, पत्तियाँ तोड़ने से कोई नतीजा नहीं। दौलत वालों में कभी-कभी ऐसे लोगों निकल आते हैं, जो सब कुछ त्याग कर खुदा की याद में जा बैठते हैं, मगर दौलत का राज्य बदस्तूर कायम है। उसमें जरा भी कमजोरी नहीं आने पाई। मिर्जा को मेहता की हठधर्मी पर दु:ख हुआ। इतना पढ़ा-लिखा विचारवान आदमी इस तरह की बातें करे! समाज की व्यवस्था क्या आसानी से बदल जायगी? वह तो सदियों का मुआमला है। तब तक क्या यह अनर्थ होने दिया जाय? उसकी रोकथाम न की जाय, इन अबलाओं को मर्दों की लिप्सा का शिकार होने दिया जाय? क्यों न शेर को पिंजरे में बंद कर दिया जाए कि वह दाँत और नाखून होते हुए भी किसी को हानि न पहुँचा सके। क्या उस वक्त तक चुपचाप बैठा रहा जाए, जब तक शेर अहिंसा का व्रत न ले ले? दौलत वाले और जिस तरह चाहें अपनी दौलत उड़ाएँ मिर्जा जी को गम नहीं। शराब में डूब जाएँ, कारों की माला गले में डाल लें, किले बनवाएँ, धर्मशाले और मस्जिदें खड़ी करें, उन्हें कोई परवा नहीं। अबलाओं की जिंदगी न खराब करें। यह मिर्जा जी नहीं देख सकते। वह रूप के बाजार को ऐसा खाली कर देंगे कि दौलत वालों की अशर्फियों पर कोई थूकनेवाला भी न मिले। क्या जिन दिनों शराब की दूकानों की पिकेटिंग होती थी, अच्छे-अच्छे शराबी पानी पी-पी कर दिल की आग नहीं बुझाते थे? मेहता ने मिर्जा की बेवकूफी पर हँस कर कहा - आपको मालूम होना चाहिए कि दुनिया में ऐसे मुल्क भी हैं, जहाँ वेश्याएँ नहीं हैं। मगर अमीरों की दौलत वहाँ भी दिलचस्पियों के सामान पैदा कर लेती है। मिर्जा जी भी मेहता की जड़ता पर हँसे - जानता हूँ मेहरबान, जानता हूँ। आपकी दुआ से दुनिया देख चुका हूँ, मगर यह हिंदुस्तान है, यूरोप नहीं है।
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