मगर देवी जी मर जाने को जितना आसान समझती थीं, और लोग न समझते थे। कोई आदमी बाहर निकलने की फिर हिम्मत करे और पठान गुस्से में आ कर दस-पाँच फैर कर दे, तो यहाँ सफाया हो जायगा। बहुत होगा, पुलिस उसे फाँसी सजा दे देगी। वह भी क्या ठीक। एक बड़े कबीले का सरदार है। उसे फाँसी देते हुए सरकार भी सोच-विचार करेगी। ऊपर से दबाव पड़ेगा। राजनीति के सामने न्याय को कौन पूछता है - हमारे ऊपर उलटे मुकदमे दायर हो जायँ और दंडकारी पुलिस बिठा दी जाय, तो आश्चर्य नहीं, कितने मजे से हँसी-मजाक हो रहा था। अब तक ड्रामा का आनंद उठाते होते। इस शैतान ने आ कर एक नई विपत्ति खड़ी कर दी, और ऐसा जान पड़ता है, बिना दो-एक खून किए, मानेगा भी नहीं। खन्ना ने मालती को फटकारा - देवी जी, आप तो हमें ऐसा लताड़ रही हैं, मानो अपने प्राण रक्षा करना कोई पाप है। प्राण का मोह प्राणि-मात्र में होता है और हम लोगों में भी हो, तो कोई लज्जा की बात नहीं। आप हमारी जान इतनी सस्ती समझती हैं, यह देख कर मुझे खेद होता है। एक हजार का ही तो मुआमला है। आपके पास मुफ्त के एक हजार हैं, उसे दे कर क्यों नहीं बिदा कर देतीं। आप खुद अपने बेइज्जती करा रही हैं, इसमें हमारा क्या दोष? रायसाहब ने गर्म हो कर कहा - अगर इसने देवी जी को हाथ लगाया, तो चाहे मेरी लाश यहीं तड़पने लगे, मैं उससे भिड़ जाऊँगा। आखिर वह भी आदमी ही तो है। मिर्जा साहब ने संदेह से सिर हिला कर कहा - रायसाहब, आप अभी तो इन सबों के मिजाज से वाकिफ नहीं हैं। यह फैर करना शुरू करेगा, तो फिर किसी को जिंदा न छोड़ेगा। इनका निशाना बेखता होता है। मि. तंखा बेचारे आने वाले चुनाव की समस्या सुलझाने आए थे। दस-पाँच हजार का वारा-न्यारा करके घर जाने का स्वप्न देख रहे थे। यहाँ जीवन ही संकट में पड़ गया। बोले - सबसे सरल उपाय वही है, जो अभी खन्ना जी ने बतलाया। एक हजार की ही बात और रुपए मौजूद हैं, तो आप लोग क्यों इतना सोच-विचार कर रहे हैं। मिस मालती ने तंखा को तिरस्कार-भरी आँखों से देखा! 'आप लोग इतने कायर हैं, यह मैं न समझती थी।' 'मैं भी यह न समझता था कि आपको रुपए इतने प्यारे हैं और वह भी मुफ्त के !' 'जब आप लोग मेरा अपमान देख सकते हैं, तो अपने घर की स्त्रियों का अपमान भी देख सकते होंगे?' 'तो आप भी पैसे के लिए अपने घर के पुरुषों को होम करने में संकोच न करेंगी।' खान इतनी देर तक झल्लाया हुआ-सा इन लोगों की गिटपिट सुन रहा था। एकाएक गरज कर बोला - अम अब नइऊ मानेगा। अम इतनी देर यहाँ खड़ा है, तुम लोग कोई जवाब नईं देता। (जेब से सीटी निकाल कर) अम तुमको एक लमहा और देता है, अगर तुम रूपया नईं देता तो अम सीटी बजायगा और अमारा पचीस जवान यहाँ आ जायगा। बस! फिर आँखों में प्रेम की ज्वाला भर कर उसने मिस मालती को देखा। तुम अमारे साथ चलेगा दिलदार! अम तुम्हारे ऊपर फिदा हो जायगा। अपना जान तुम्हारे कदमों पर रख देगा। इतना आदमी तुम्हारा आशिक है, मगर कोई सच्चा आशिक नईं है। सच्चा इश्क क्या है, अम दिखा देगा। तुम्हारा इशारा पाते ही अम अपने सीने में खंजर चुभा सकता है।'
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