मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि

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कर्मभूमि

तीसरा भाग - छ:

पेज- 151

शान्तिकुमार ने निशंक भाव से कहा-नहीं।
'उन्हें आपने क्षम्य समझ लिया?'
'नहीं ।'
'और यह समझकर भी आपने उनसे कुछ नहीं कहा- कभी एक पत्र भी नहीं लिखा- मैं पूछती हूं, इस उदासीनता का क्या कारण है- यही न कि इस अवसर पर एक नारी का अपमान हुआ है। यदि वही कृत्य मुझसे हुआ होता, तब भी आप इतने ही उदासीन रह सकते- बोलिए।'
शान्तिकुमार रो पड़े। नारी-हृदय की संचित व्यथा आज इस भीषण विद्रोह के रूप में प्रकट होकर कितनी करूण हो गई थी।
सुखदा उसी आवेश में बोली-कहते हैं, आदमी की पहचान उसकी संगत से होती है। जिसकी संगत आप, मुहम्मद सलीम और स्वामी आत्मानन्द जैसे महानुभावों की हो, वह अपने धर्म को इतना भूल जाय यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मैं यह नहीं कहती कि मैं निर्दोष हूं। कोई स्त्री यह दावा नहीं कर सकती, और न कोई पुरुष ही यह दावा कर सकता है। मैंने सकीना से मुलाकात की है। संभव है उसमें वह गुण हो, जो मुझमें नहीं है। वह ज्यादा मधुर है, उसके स्वभाव में कोमलता है। हो सकता है, वह प्रेम भी अधिक कर सकती हो लेकिन यदि इसी तरह सभी पुरुष और स्त्रियां तुलना करके बैठ जायं, तो संसार की क्या गति होगी- फिर तो यहां रक्त और आंसुओं की नदियों के सिवा और कुछ न दिखाई देगा।
शान्तिकुमार ने परास्त होकर कहा-मैं अपनी गलती को मानता हूं, सुखदादेवी मैं तुम्हें न जानता था और इस भय में था कि तुम्हारी ज्यादती है। मैं आज ही अमर को पत्र-
सुखदा ने फिर बात काटी-नहीं, मैं आपसे यह प्रेरणा करने नहीं आई हूं, और न यह चाहती हूं कि आप उनसे मेरी ओर से दया की भिक्षा मांगें। यदि वह मुझसे दूर भागना चाहते हैं, तो मैं भी उनको बंधकर नहीं रखना चाहती। पुरुष को जो आजादी मिली है, वह उसे मुबारक रहे वह अपना तन-मन गली-गली बेचता फिरे। मैं अपने बंधन में प्रसन्न हूं। और ईश्वर से यही विनती करती हूं कि वह इस बंधन में मुझे डाले रखे। मैं जलन यार् ईर्ष्‍या से विचलित हो जाऊं, उस दिन के पहले वह मेरा अंत कर दे। मुझे आपसे मिलकर आज जो तृप्ति हुई, उसका प्रमाण यही है कि मैं आपसे वह बातें कह गई, जो मैंने कभी अपनी माता से भी नहीं कहीं। बीबी आपका बखान करती थी, उससे ज्यादा सज्जनता आपमें पाई मगर आपको मैं अकेला न रहने दूंगी। ईश्‍वर वह दिन लाए कि मैं इस घर में भाभी के दर्शन करूं।
जब दोनों रमणियां यहां से चलीं, तो डॉक्टर साहब लाठी टेकते हुए फाटक तक उन्हें पहुंचाने आए और फिर कमरे में आकर लेटे, तो ऐसा जान पड़ा कि उनका यौवन जाग उठा है। सुखदा के वेदना से भरे हुए शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे और नैना मुन्ने को गोद में लिए जैसे उनके सम्मुख खड़ी थी।

 

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