|
|
मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि
कर्मभूमि
तीसरा भाग - सात
पेज- 159
यह कहते हुए उसने मुस्कराकर शान्तिकुमार से पूछा-आप तो धोखा न देंगे-
शान्तिकुमार को यह प्रश्न, हंसकर पूछे जाने पर भी बुरा मालूम हुआ-मेरी नीयत क्या होगी, यह मैं खुद नहीं जानता- आपको मुझ पर इतना विश्वास कर लेने का कोई कारण भी नहीं है।
सुखदा ने बात संभाली-यह बात नहीं है, डॉक्टर साहब अम्मां ने हंसी की थी।
'विष माधुर्य के साथ भी अपना असर करता है।'
'यह तो बुरा मानने की बात न थी?'
'मैं बुरा नहीं मानता। अभी दस-पांच वर्ष मेरी परीक्षा होने दीजिए। अभी मैं इतने बड़े विश्वास के योग्य नहीं हुआ।'
रेणुका ने परास्त होकर कहा-अच्छा साहब, मैं अपना प्रश्न वापस लेती हूं। आप कल मेरे घर आइएगा। मैं मोटर भेज दूंगी। ट्रस्ट बनाना पहला काम है। मुझे अब कुछ नहीं पूछना है आपके ऊपर मुझे पूरा विश्वास है।
डॉक्टर साहब ने धन्यवाद देते हुए कहा-मैं आपके विश्वास को बनाए रखने की चेष्टा करूंगा।
रेणुका बोलीं-मैं चाहती हूं जल्दी ही इस काम को कर डालूं। फिर नैना का विवाह आ पड़ेगा, तो महीनों फुर्सत न मिलेगी।
शान्तिकुमार ने जैसे सिहरकर कहा-अच्छा, नैना देवी का विवाह होने वाला है- यह तो बड़ी शुभ सूचना है। मैं कल ही आपसे मिलकर सारी बातें तय कर लूंगा। अमर को भी सूचना दे दूं-
सुखदा ने कठोर स्वर में कहा-कोई जरूरत नहीं-
रेणुका बोलीं-नहीं, आप उनको सूचना दे दीजिएगा। शायद आएं। मुझे तो आशा है जरूर आएंगे।
डॉक्टर साहब यहां से चले, तो नैना बालक को लिए मोटर से उतर रही थी।
शान्तिकुमार ने आहत कंठ से कहा-तुम अब चली जाओगी, नैना-
नैना ने सिर झुका लिया पर उसकी आंखें सजल थीं।
|
|
|