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मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि
कर्मभूमि
तीसरा भाग - आठ
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'तो चलते-चलते हमारी थोड़ी-सी मदद करो दक्षिण तरफ म्युनिसिपैलिटी के जो प्लाट हैं, वह हमें दिला दो मुर्ति में?'
सलीम का मुख गंभीर हो गया। बोला-उन प्लाटों की तो शायद बातचीत हो चुकी है। कई मेंम्बर खुद बेटों और बीवियों के नाम खरीदने को मुंह खोले बैठे हैं।
सुखदा विस्मित हो गई-अच्छा भीतर-ही-भीतर यह कपट-लीला भी होती है। तब तो आपकी मदद की और जरूरत है। इस मायाजाल को तोड़ना आपका कर्तव्य है।
सलीम ने आंखें चुराकर कहा-अब्बाजान इस मुआमले में मेरी एक न सुनेंगे। और हक यह है कि जो मुआमला तय हो चुका, उसके बारे में कुछ जोर देना भी तो मुनासिब नहीं।
यह कहते हुए उसने सुखदा और शान्तिकुमार से हाथ मिलाया और दोनों से कल शाम के जलसे में आने का आग्रह करके चला गया। वहां बैठने में अब उसकी खैरियत न थी।
शान्तिकुमार ने कहा-देखा आपने अभी जगह पर गए नहीं पर मिजाज में अफसरी की बू आ गई। कुछ अजब तिलिस्म है कि जो उसमें कदम रखता है, उस पर जैसे नशा हो जाता है। इस तजवीज के यह पक्के समर्थक थे पर आज कैसा निकल गए- हाफिजजी से अगर जोर देकर कहें, तो मुमकिन नहीं कि वह राजी हो जाएं।
सुखदा ने मुख पर आत्मगौरव की झलक आ गई-हमें न्याय की लड़ाई लड़नी है। न्याय हमारी मदद करेगा। हम और किसी की मदद के मुहताज नहीं।
इसी समय लाला समरकान्त आ गए। शान्ति कुमार को बैठे देखकर जरा झिझके। फिर पूछा-कहिए डॉक्टर साहब, हाफिजजी से क्या बातचीत हुई-
शान्तिकुमार ने अब तक जो कुछ किया था, वह सब कह सुनाया।
समरकान्त ने असंतोष का भाव प्रकट करते हुए कहा-आप लोग विलायत के पढ़े हुए साहब, मैं भला आपके सामने क्या मुंह खोल सकता हूं, लेकिन आप जो चाहें कि न्याय और सत्य के नाम पर आपको जमीन मिल जाए, तो चुपके हो रहिए। इस काम के लिए दस-बीस हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे-हरेक मेंबर से अलग-अलग मिलिए। देखिए। किस मिजाज का, किस विचार का, किस रंग-ढंग का आदमी है। उसी तरह उसे काबू में लाइए-खुशामद से राजी हो तो खुशामद से, चांदी से राजी हो चांदी से, दुआ-तावीज, जंतर-मंतर जिस तरह काम निकले, उस तरह निकालिए। हाफिजजी से मेरी पुरानी मुलाकात है। पच्चीस हजार की थैली उनके मामा के हाथ घर में भेज दो, फिर देखें कैसे जमीन नहीं मिलती- सरदार कल्याणसिंह को नये मकानों का ठेका देने का वादा कर लो, वह काबू में आ जाएंगे। दुबेजी को पांच तोले चन्द्रोदय भेंट करके पटा सकते हो। खन्ना से योगाभ्यास की बातें करो और किसी संत से मिला दो ऐसा संत हो, जो उन्हें दो-चार आसन सिखा दे। राय साहब धानीराम के नाम पर अपने नए मुहल्ले का नाम रख दो, उनसे कुछ रुपये भी मिल जाएंगे। यह हैं काम करने का ढंग। रुपये की तरफ से निश्चिंत रहो। बनियों को चाहे बदनाम कर लो पर परमार्थ के काम में बनिये ही आगे आते हैं। दस लाख तक का बीमा तो मैं लेता हूं। कई भाइयों के तो वोट ले आया। मुझे तो रात को नींद नहीं आती। यही सोचा करता हूं कि कैसे यह काम सि' हो। जब तक काम सि' न हो जाएगा, मुझे ज्वर-सा चढ़ा रहेगा।
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