मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि

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कर्मभूमि

तीसरा भाग - बारह

पेज- 179

चमारों का मुखिया सुमेर लाठी टेकता हुआ, मोटे चश्मे लगाए पोपले मुंह से बोला-अरज-माईद करने के सिवा और हम कर ही क्या सकते हैं- हमारा क्या बस है-
मुरली खटीक ने बड़ी-बड़ी मूंछों पर हाथ फेरकर कहा-बस कैसे नहीं है- हम आदमी नहीं हैं कि हमारे बाल-बच्चे नहीं हैं- किसी को तो महल और बंगला चाहिए, हमें कच्चा घर भी न मिले। मेरे घर में पांच जने हैं उनमें से चार आदमी महीने भर से बीमार हैं। उस कालकोठरी में बीमार न हों, तो क्या हो- सामने से फंदा नाला बहता है। सांस लेते नाक फटती है।
ईदू कुंजडा अपनी झुकी हुई कमर को सीधी करने की चेष्टा करते हुए बोला-अगर मुझपर में आराम करना लिखा होता, तो हम भी किसी बड़े आदमी के घर न पैदा होते- हाफिज हलीम आज बड़े आदमी हो गए हैं, नहीं मेरे सामने जूते बेचते थे। लड़ाई में बन गए। अब रईसों के ठाठ हैं। सामने चला जाऊं तो पहचानेंगे नहीं। नहीं तो पैसे-धोले की मूली-तुरई उधार ले जाते थे। अल्लाह बड़ा कारसाज है। अब तो लड़का भी हाकिम हो गया है। क्या पूछना है-
जंगली घोसी पूरा काला देव था। शहर का मशहूर पहलवान। बोला-मैं तो पहले ही जानता था, कुछ होना-हवाना नहीं है। अमीरों के सामने हमें कौन पूछता है-
अमीर बेग पतली, लंबी गरदन निकालकर बोला-बोर्ड के फैसले की अपील तो कहीं होती होगी- हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। हाईकोर्ट न सुने, तो बादशाह से फरियाद की जाय।
सुखदा ने मुस्कराकर कहा-बोर्ड के फैसले की अपील वही है, जो इस वक्त तुम्हारे सामने हो रही है। आप ही लोग हाईकोर्ट हैं, आप ही लोग जज हैं। बोर्ड अमीरों का मुंह देखता है। गरीबों के मुहल्ले खोद-खोदकर फेंक दिए जाते हैं, इसलिए कि अमीरों के महल बनें। गरीबों को दस-पांच रुपये मुआवजा देकर उसी जमीन के हजारों वसूल किए जाते हैं। उन रुपयों से अफसरों को बड़ी-बड़ी तनख्वाह दी जाती हैं। जिस जमीन पर हमारा दावा था, वह लाला धानीराम को दे दी गई। वहां उनके बंगले बनेंगे। बोर्ड को रुपये से प्यार है, तुम्हारी जान की उनकी निगाह में कोई कीमत नहीं। इन स्वार्थियों से इंसाफ की आशा छोड़ दो। तुम्हारे पास इतनी शक्ति है, उसका उन्हें खयाल नहीं है। वे समझते हैं, यह गरीब लोग हमारा कर ही क्या सकते हैं- मैं कहती हूं, तुम्हारे ही हाथों में सब कुछ है। हमें लड़ाई नहीं करनी है, फसाद नहीं करना है। सिर्फ हड़ताल करना है, यह दिखाने के लिए कि तुमने बोर्ड के फैसले को मजूंर नहीं किया और यह हड़ताल एक-दो दिन की नहीं होगी। यह उस वक्त तक रहेगी जब तक बोर्ड अपना फैसला रप्र करके हमें जमीन न दे दे। मैं जानती हूं, ऐसी हड़ताल करना आसान नहीं है। आप लोगों में बहुत ऐसे हैं, जिनके घर में एक दिन का भी भोजन नहीं है मगर वह भी जानती हूं कि बिना तकलीफ उठाए आराम नहीं मिलता।

 

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