मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि

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कर्मभूमि

तीसरा भाग - बारह

पेज- 182

जंगली ने हामी भरी-हम क्या खाकर रईसों से लड़ेंगे- बहूजी के पास धन है, इलम है, वह अफसरों से दो-दो बातें कर सकती हैं। हर तरह का नुकसान सह सकती हैं। हमार तो बधिया बैठ जाएगी।
किंतु सभी मन में लज्जित थे, जैसे मैदान से भागा सिपाही। उसे अपने प्राणों के बचाने का जितना आनंद होता है, उससे कहीं ज्यादा भागने की लज्जा होती है। वह अपनी नीति का समर्थन मुंह से चाहे कर ले, हृदय से नहीं कर सकता।
जरा देर में पानी रूक गया और यह लोग भी यहां से चले लेकिन उनके उदास चेहरों में, उनकी मंद चाल में, उनके झुके हुए सिरों में, उनके चिंतामय मौन में, उनके मन के भाव साफ झलक रहे थे।
सुखदा घर पहुंची, तो बहुत उदास थी। सार्वजनिक जीवन में हार उसे यह पहला अनुभव था और उसका मन किसी चाबुक खाए हुए अल्हड़ बछेड़े की तरह सारा साज और बम और बंधन तोड़-ताड़कर भाग जाने के लिए व्यग्र हो रहा था। ऐसे कायरों से क्या आशा की जा सकती है जो लोग स्थायी लाभ के लिए थोड़े-से कष्ट नहीं उठा सकते, उनके लिए संसार में अपमान और दु:ख के सिवा और क्या है-
नैना मन में इस हार पर खुश थी। अपने घर में उसकी कुछ पूछ न थी, उसे अब तक अपमान-ही-अपमान मिला था, फिर भी उसका भविष्य उसी घर से संब' हो गया था। अपनी आंखें दुखती हैं, तो फोड़ नहीं दी जातीं। सेठ धानीराम ने जमीन हजारों में खरीदी थी, थोड़े ही दिनों में उनके लाखों में बिकने की आशा थी। वह सुखदा से कुछ कह तो न सकती थी पर यह आंदोलन उसे बुरा मालूम होता था। सुखदा के प्रति अब उसको वह भक्ति न रही थी। अपनी द्वेष-त्ष्‍णा शांत करने ही के लिए तो वह आग लगा रही है इन तुच्छ भावनाओं से दबकर सुखदा उसकी आंखों में कुछ संकुचित हो गई थी।
नैना ने आलोचक बनकर कहा-अगर यहां के आदमियों को संगठित कर लेना इतना आसान होता, तो आज यह दुर्दशा ही क्यों होती-
सुखदा आवेश में बोली-हड़ताल तो होगी, चाहे चौधरी लोग मानें या न मानें। चौधरी मोटे हो गए हैं और मोटे आदमी स्वार्थी हो जाते हैं।
नैना ने आपत्ति की-डरना मनुष्य के लिए स्वाभाविक है। जिसमें पुरुषार्थ है, ज्ञान है, बल है, वह बाधाओं को तुच्छ समझ सकता है। जिसके पास व्यंजनों से भरा हुआ थाल है, वह एक टुकड़ा कुत्तो के सामने फेंक सकता है, जिसके पास एक ही टुकड़ा हो वह उसी से चिमटेगा ।
सुखदा ने मानो इस कथन को सुना ही नहीं-मंदिर वाले झगड़े में न जाने सभी में कैसे साहस आ गया था। मैं एक बार वही कांड दिखा देना चाहती हूं।

 

 

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