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मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि
कर्मभूमि
पहला भाग- एक
पेज- 3
दोनों दोस्तों ने पान खाए और स्कूल की तरफ चले। अमरकान्त ने कहा-पंडितजी बड़ी डांट बताएंगे।
'फीस ही तो लेंगे'
'और जो पूछें, अब तक कहां थे?'
'कह देना, फीस लाना भूल गया था।'
'मुझसे न कहते बनेगा। मैं साफ-साफ कह दूंगा।'
तो तुम पिटोगे भी मेरे हाथ से'
संध्या समय जब छुट्टी हुई और दोनों मित्र घर चले, अमरकान्त ने कहा-तुमने आज मुझ पर जो एहसान किया है...
सलीम ने उसके मुंह पर हाथ रखकर कहा-बस खबरदार, जो मुंह से एक आवाज भी निकाली। कभी भूलकर भी इसका जिक्र न करना।
'आज जलसे में आओगे?'
'मजमून क्या है, मुझे तो याद नहीं?'
'अजी वही पश्चिमी सभ्यता है।'
'तो मुझे दो-चार प्वाइंट बता दो, नहीं तो मैं वहां कहूंगा क्या?'
'बताना क्या है- पश्चिमी सभ्यता की बुराइयां हम सब जानते ही हैं। वही बयान कर देना।'
'तुम जानते होगे, मुझे तो एक भी नहीं मालूम।'
'एक तो यह तालीम ही है। जहां देखो वहीं दूकानदारी। अदालत की दूकान, इल्म की दूकान, सेहत की दूकान। इस एक प्वाइंट पर बहुत कुछ कहा जा सकता है।'
'अच्छी बात है, आऊंगा।;
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