मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि

premchand karmboomi premchand novel best story

कर्मभूमि

पहला भाग- नौ

पेज-34

लालाजी ने इस प्रस्ताव को हर्ष से स्वीकार कर लिया। यहां से जब वह घर लौटे तो देखा-दूकान पर दो गोरे और एक मेम बैठे हुए हैं और अमरकान्त उनसे बातें कर रहा है। कभी-कभी नीचे दर्जे के गोरे यहां अपनी घड़ियां या और कोई चीज बेचने के लिए आ जाते थे। लालाजी उन्हें खूब ठगते थे। वह जानते थे कि ये लोग बदनामी के भय से किसी दूसरी दुकान पर न जाएंगे। उन्होंने जाते-ही-जाते अमरकान्त को हटा दिया और खुद सौदा पटाने लगे। अमरकान्त स्पष्टवादी था और यह स्पष्टवादिता का अवसर न था। मेम साहब को सलाम करके पूछा-कहिए मेम साहब, क्या हुक्म है-
तीनों शराब के नशे में चूर थे। मेम साहब ने सोने की एक जंजीर निकालकर कहा -सेठजी, हम इसको बेचना चाहता है। बाबा बहुत बीमार है। उसका दवाई में बहुत खर्च हो गया।
समरकान्त ने जंजीर लेकर देखा और हाथ में तौलते हुए बोले-इसका सोना तो अच्छा नहीं है, मेम साहब आपने कहां बनवाया था-
मेम हंसकर बोली-ओ तुम बराबर यही बात कहता है। सोना बहुत अच्छा है। अंग्रेजी दूकान का बना हुआ है। आप इसको ले लें।
समरकान्त ने अनिच्छा का भाव दिखाते हुए कहा-बड़ी-बड़ी दूकानें ही तो ग्राहकों को उलटे छुरे से मूंड़ती हैं। जो कपड़ा यहां बाजार में छह आने गज मिलेगा, वही अंग्रेजी दूकानों पर बारह आने गज से नीचे न मिलेगा। मैं तो दस रुपये तोले से बेशी नहीं दे सकता।
'और कुछ नहीं देगा?'
'कुछ और नहीं। यह भी आपकी खातिर है।'
यह गोरे उस श्रेणी के थे, जो अपनी आत्मा को शराब और जुए के हाथों बेच देते हैं, बे-टिकट गर्स्ट क्लास में सफर करते हैं, होटल वालों को धोखा देकर उड़ जाते हैं और जब कुछ बस नहीं चलता, तो बिगड़े हुए शरीफ बनकर भीख मांगते हैं। तीनों ने आपस में सलाह की और जंजीर बेच डाली। रुपये लेकर दूकान से उतरे और तांगे पर बैठे ही थे कि एक भिखारिन तांगे के पास आकर खड़ी हो गई। वे तीनों रुपये पाने की खुशी में भूले हुए थे कि सहसा उस भिखारिन ने छुरी निकालकर एक गोरे पर वार किया। छुरी उसके मुंह पर आ रही थी। उसने घबराकर मुंह पीछे हटाया तो छाती में चुभ गई। वह तो तांगे पर ही हाय-हाय करने लगा। शेष दोनों गोरे तांगे से उतर पड़े और दूकान पर आकर प्राणरक्षा मांफना चाहते थे कि भिखारिन ने दूसरे गोरे पर वार कर दिया। छुरी उसकी पसली में पहुंच गई। दूकान पर चढ़ने न पाया था, धाड़ाम से गिर पड़ा। भिखारिन लपककर दूकान पर चढ़ गई और मेम पर झपटी कि अमरकान्त हां-हां करके उसकी छुरी छीन लेने को बढ़ा। भिखारिन ने उसे देखकर छुरी फेंक दी और दूकान के नीचे कूदकर खड़ी हो गई। सारे बाजार में हलचल मच गई-एक गोरे ने कई आदमियों को मार डाला है, लाला समरकान्त मार डाले गए, अमरकान्त को भी चोट आई है। ऐसी दशा में किसे अपनी जान भारी थी, जो वहां आता। लोग दूकानें बंद करके भागने लगे।

 

पिछला पृष्ठ कर्मभूमि अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

 

top