विद्यालय में एक बार 'धर्म' पर विवाद हुआ। अमर ने उस अवसर पर जो भाषण किया, उसने सारे शहर में धूम मचा दी। वह अब क्रांति ही में देश का उबर समझता था-ऐसी क्रांति में, जो सर्वव्यापक हो, जो जीवन के मिथ्या आदर्शों का, झूठे सिध्दांतों का, परिपाटियों का अंत कर दे, जो एक नए युग की प्र्रवत्ताक हो, एक नई सृष्टि खड़ी कर दे, जो मिट्टी के असंख्य देवताओं को तोड़-फोड़कर चकनाचूर कर दे, जो मनुष्य को धान और धर्म के आधार पर टिकने वाले राज्य के पंजे से मुक्त कर दे। उसके एक-एक अणु से क्रान्ति क्रान्ति ।' की आवाज सदा निकलती रहती थी लेकिन उदार हिन्दू-समाज उस वक्त तक किसी से नहीं बोलता, जब तक उसके लोकाचार पर खुल्लम-खुल्ला आघात न हो। कोई क्रांति नहीं, क्रांति के बाबा का ही उपदेश क्यों न करे, उसे परवाह नहीं होती लेकिन उपदेश की सीमा के बाहर व्यवहार क्षेत्र में किसी ने पांव निकाला और समाज ने उसकी गर्दन पकड़ी। अमर की क्रांति अभी तक व्याख्यानों और लेखों तक सीमित थी। डिग्री की परीक्षा समाप्त होते ही वह व्यवहार-क्षेत्र में उतरना चाहता था। पर अभी परीक्षा को एक महीना बाकी ही था कि एक ऐसी घटना हो गई, जिसने उसे मैदान में आने को मजबूर कर दिया। यह सकीना की शादी थी।
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