अरण्यकाण्ड
अरण्यकाण्ड पेज 1
श्लोक
मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।1।।
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं
पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।।
सो0-उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।।
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए।।
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर।।
सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा।।
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा।।
सीता चरन चौंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा।।
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना।।
दो0-अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह।।1।।
प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा।।
धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं।।
भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा।।
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका।।
काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही।।
मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना।।
मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी।।
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।
नारद देखा बिकल जयंता। लागि दया कोमल चित संता।।
पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही।।
आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई।।
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहिं पाई।।
निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ।।
सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी।।
सो0-कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम।।2।
रघुपति चित्रकूट बसि नाना। चरित किए श्रुति सुधा समाना।।
बहुरि राम अस मन अनुमाना। होइहि भीर सबहिं मोहि जाना।।
सकल मुनिन्ह सन बिदा कराई। सीता सहित चले द्वौ भाई।।
अत्रि के आश्रम जब प्रभु गयऊ। सुनत महामुनि हरषित भयऊ।।
पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए।।
करत दंडवत मुनि उर लाए। प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए।।
देखि राम छबि नयन जुड़ाने। सादर निज आश्रम तब आने।।
करि पूजा कहि बचन सुहाए। दिए मूल फल प्रभु मन भाए।।
सो0-प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि।
मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत।।3।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217