अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 12
अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ।।
सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही।।
अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला।।
रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी।।
देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी।।
तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई।।
अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा।।
देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता।।
दो0-मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात।
आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात।।45।।
धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू।।
चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें।।
आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई।।
बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी।।
अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा।।
नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी।।
सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी।।
जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई।।
दो0-मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहि सोकु न हृदयँ समाइ।
मनहुँ ०करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ।।46।।
मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकेइहि गारी।।
एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ।।
निज कर नयन काढ़ि चह दीखा। डारि सुधा बिषु चाहत चीखा।।
कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी।।
पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा। सुख महुँ सोक ठाटु धरि ठाटा।।
सदा रामु एहि प्रान समाना। कारन कवन कुटिलपनु ठाना।।
सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ।।
निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई।।
दो0-काह न पावकु जारि सक का न समुद्र समाइ।
का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ।।47।।
का सुनाइ बिधि काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा।।
एक कहहिं भल भूप न कीन्हा। बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा।।
जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु। अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु।।
एक धरम परमिति पहिचाने। नृपहि दोसु नहिं देहिं सयाने।।
सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी।।
एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं।।
कान मूदि कर रद गहि जीहा। एक कहहिं यह बात अलीहा।।
सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे।।
दो0-चंदु चवै बरु अनल कन सुधा होइ बिषतूल।
सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल।।48।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217